Book Title: Jain Bhanu Pratham Bhag
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Jaswantrai Jaini

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Page 36
________________ ( २८ ) झूठा ठहरेगा, और यह तो कल्पांतकालमें भी नहीं होसकता है कि ढूंढकवचन तो सत्य होवे और शास्त्र का वचन असत्य होवे । तथापि आभिनिवेशिक मिथ्यात्व के ज़ोर से जमालि की तरह अपना कदाग्रह न छोड़ें, और अशुभकर्म को जोड़ें तो उसमें उन की मरज़ी, तथापि श्रीजम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति का पाठ दिखाते हैं, ज़रा मान का घूघट ऊंचा करके देखे तो स्वयं ही ज्ञात होजावेगा, जिस समय भगवान् श्रीऋषभदेव स्वामी का जन्म हुआ उस समय शकेंद्र ने भगवान् श्रीऋषभदेव स्वामी को: __ " णमोत्थूणं भगवओ तित्थयरस्स आइगरस्स जाव संपाविउकामस्स वदामि णं भगवंतं तत्थगयं इह गए पासउ मे भयवं तत्थगए इह गयंति कट्ट वंदइ णमंसइ"॥ इस रीति वंदना नमस्कार किया । तथा हरिणेगमेसि नामा देवता द्वारा, हित के वास्ते, सुखके वास्ते, श्रीतीर्थकर भगवान का जन्ममहोत्सव करने के वास्ते जाने का अपना अभिप्राय देवताओं को मालूम किया,इस बात को सुनकर चित्तमें अतीव प्रसन्न होकर कितनेक देवता वंदना करने के वास्ते, कितनेक देवता पूजा करने के वास्ते, कितनेक देवता सत्कार करने के वास्ते, कितनेक सन्मान के वास्ते, कितनेक दर्शन के वास्ते, कितनेक कुतूहल के निमित्त, कितनेक जिनेश्वरदेव के भक्तिराग के निमित्त, कितनेक शकेंद्र के वचन को पालने के निमित्त, कितनेक मित्रों की प्रेरणा से और कितनेक जीत समझ के अर्थात् सम्यग्दृष्टि देवता को श्रीजिनेश्वर देव के जन्ममहोत्सव में जरूर उद्यम करना चाहिये इत्यादि निमित्तों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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