Book Title: Jain Bhanu Pratham Bhag
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Jaswantrai Jaini

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Page 31
________________ ( २३ ) ऐसे पुरुष कर लेवे तो उसमें हमारी कोई क्षति नहीं है । नय विषयिक वर्णनम् । तटस्थ - पार्वती की करी कल्पना का पूरा २ जवाब पूर्वोक्त वर्णन से मिल गया है, वास्तविक में तो कुल पोथी का ही जवाब हो गया है क्योंकि सारी पोथी इसी तरह कुतकों से प्रायः भरी हुई है । तो भी पार्वती की करी कुयुक्तियों का भी कुछ विवेचन करना योग्य है, जिससे कि भोले भाले अनजान जीव पार्वती के जाल में फंस न जावें, और बाकी प्राचीनशास्त्रीयप्रमाण न होने से पार्वती का लेख तो स्वयं ही खंडित हो चुका है !!! विवेचक - ६ ष्ठ पर ३ सत्य नय लिख मारे हैं सो किसी भी जैन सिद्धान्त में नहीं हैं, पार्वती के लिखने का यह अभिप्राय मालूम होता है कि पहले चार नय असस हैं, इस वास्ते चार नयों का मानना असत्य है, परंतु यदि ऐसे होता तो शास्त्रकार सात नयों का कथन किस वास्ते करते ? असल बात तो यह है कि जैनशास्त्र में जो नयों का स्वरूप सप्तभंगी आदि का वर्णन है उसका परमार्थ ढकपंथी जानते ही नहीं हैं । यदि जानते होवें तो कदापि एकांत एक वस्तु का ग्रहण और एक का निषेध न करें, जैसे कि पार्वती ने किया है तथा एकान्त वस्तु का खींचने वाला मिध्यादृष्टि कहाता है सो पार्वती ने चार नयों को एकांत असस ठहराने का उद्यम किया है, इसवास्ते पार्वती के शिर पर तो मिथ्यादृष्टित्व की छाप बराबर लग चुकी है, सो तब ही मिटेगी जब सातही नयों को अपने२ स्थानों में यथार्थ मानेगी और जब अपने स्थानमें सब नय यथार्थ माने गये तब तो ढुंढकमत को जलांजलि बलात्कार देनी पड़ी || Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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