Book Title: Jain Bhanu Pratham Bhag
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Jaswantrai Jaini

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Page 20
________________ (१५ ) पाठ में कहीं भी नहीं हैं परन्तु टब्बे में कहीं कहीं अपना मनाकल्पित व्यवहार लिख मारा है। भस्मग्रह का वर्णन, सोलह स्वप्न, बारां वर्ष का दुष्काल, वीरविक्रम, जंबूस्वामि चरित्र, चंदनबाला का वर्णन, मरुदेवी माता ने हाथी के होदे में केवलज्ञान पाया, सूरिकांता रानी ने परदेशी राजा को अंगूठा देकर मार डाला, महावीर स्वामी की तपस्या, वीर भगवान का अभिग्रह, वीर भगवान के ४२ चौमासे, महावीर स्वामी की निर्वाणभूमि, अंतगड़ सूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र, निरयावलिया सूत्र इसादि कितने ही सूत्रों के टब्वे कथा सहित कहां से लिखे गये हैं ? क्योंकि बत्तीस सूत्रों के मूल में तो पूर्वोक्त बातें कहीं भी वर्णन नहीं हैं. तो अब उत्तर देना चाहिये, कि क्या केवल बत्तीस सूत्रों के मूल पाठ मात्र या पाठ मात्र काही अर्थ मानने से ढूंढकपंथानुयायीयों का गुज़ारा हो सकेगा ? कदापि नहीं, तो फिर टीकाकारों पर कि, मूल में तो है नहीं टीका में कहां से आया? ऐसा कुविकल्प करके क्यों अपनी दुर्विदग्धता जाहिर की जाती है ? टीकाकार महाराज तो नियुक्ति,भाष्य,चूर्णि,गुरुपरंपरानुसार वर्णन करते हैं,और नियुक्ति, भाष्य चूणि सर्व पूर्वधारी महात्माओं की रचना है, उनका तिरस्कार करके गुरुपरंपरा से बहिर्भूत धर्मदास जी आदि के कथन पर निश्चय करना इससे अधिक और क्या आभिग्रहिक मिथ्यात्व होता है ? इस वास्ते केवल मूल पाठ और टब्बे के घमंड में आकर उचितानुचित विना विचारे अंड वंड लिखकर पूर्वाचार्यों की अवज्ञा करनी, और उनके किये माचीन अर्थ नहीं मानने, मनः कल्पित नये अर्थ करने और भोले भद्रिक जीवों को अपने मायाजाल में फंसाना अच्छा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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