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( १३ ) नहीं हैं, क्योंकि नय निक्षेप के नाम से जो पत्रे काले किये हैं सो अपनी चालाकी दिखाकर स्याही से अपना मुख सफेद करना चाहा है प्रथम तो"नैगमः संग्रहश्चैव व्यवहार ऋजु सूत्रको । शब्दः समभिरूढश्वा एवं भूति नयोऽमी ।१"
यह श्लोक ६ पृष्ठ में लिखा है सो अशुद्ध है शुद्ध पाठ यह है। "नैगमः संग्रहश्चैव व्यवहारर्जु सूत्रको । शब्दः समभिरूढश्व एवं भूत नया अमी" ॥१॥
दूसरा यह श्लोक बत्तीस शास्त्रों के मूल पाठ में से किस सूत्र का मूल पाठ है ? बताओ! अफसोस कि पद पद में अपनी बत्तीस सूत्रों के मानने की प्रतिज्ञा से चलायमान होकर निग्रहकोटि की खाड़ में पड़ना सो क्या बात है ? सस है पुत्र के लक्षण पालने में से ही दिख पड़ते हैं “ मतिर्गसनुसारिणी" इस महावाक्यानुसार अंत में उत्सूत्रमरूपकता का निग्रहस्थान रूप नरकखाड़े में गिरना होना ही है इसमें किसी का क्या ज़ोर चलता है किया कर्म अवश्यमेव भोगना पड़ता है। यदुक्तम्--"नत्थिकडाणं कम्माणं मुक्खो इत्यादि
तथा"। अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतंकर्म शुभाशुभम्।
नाभुक्तं क्षीयते कर्म कल्पकोटिशतैरपि ॥१॥
और ससार्थचन्द्रोदय पुस्तक बनाने का परमार्थ केवल श्री जिनप्रतिमा तथा श्रीजिनप्रतिमा के पूजन के उत्थापन सिवाय और कुछ भी नहीं जाहिर होता है और इसीवास्ते चार निक्षेपों का मनःकल्पित वर्णन पार्वती ने लिख मारा है, परन्तु इससे क्या?
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