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बहुत जीव बच जावेंगे, बस इसलिये अब निक्षेपों का अर्थ जो टीकाकार पूर्वाचार्य महात्मा का किया हुआ है, वैसा का वैसाही यहां लिखते हैं जिससे साक्षरवर्ग में अज्ञान से फूले हुए पेट रूप ढोल की पोल आपही जाहिर होजावेगी, पंडितजन खूब जान जायेंगे कि पार्वती की बोली विना तोली पाप की झोली ही खोली है, क्योंकि अपनी कल्पना की सिद्धि के लिये मनःकल्पित बातें लिखकर निक्षेपों का वर्णन अगड़म सगड़म लिखकर धोखा दिया है; परंतु साफ २ नाम, स्थापना, द्रव्य, और भाव इन चारों का स्वरूप वर्णन नहीं किया है, कहां से करे ? जबकि बत्तीस सूत्रों के मूलपाठ में चार निक्षेपों का अर्थ ही नहीं है तो कहां से ले आवे ! क्योंकि चोरी करी हुई अन्त में पकड़ी जाती है कदाचित् थोड़ा सा वर्णन कर दिया जावे तो उस शास्त्र का या टीका का नाम लेना मुश्किल होजावे, तो बलात्कार वह शास्त्र अथवा टीका माननी पड़े, इसवास्ते ऊपर ही ऊपर से कुहाड़ी मारने की शिक्षा खूब पाई है, माया करना तो स्त्री जाति का स्वभाव ही है,
तटस्थ - आपका का कहना बहुत ही ठीक है क्योंकि झूठ बोलना, विना विचारा काम करना, माया फरेव का करना, मूर्खता करनी, अतिलोभ का करना, अशुचि रहना, और निर्दय होना यह दोष प्रायः स्त्रियों में स्वभाव से ही सिद्ध होते हैं, यत :
अनृतं साहसं माया मूर्खत्वमतिलोभता । अशौचं निर्दयत्वं च स्त्रीणां दोषाः स्वभावजाः ॥ १
सो यह पूर्वोक्त दोष पार्वती ने अपने आप में ठीक सिद्ध कर दिखाये हैं, देखो, बालब्रह्मचारिणी कहां कहां शास्त्रों के अर्थ के
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