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जैन श्रागम साहिस्य में भारतीय समाज से उन्हें सजाया गया। इस मंगल अवसर पर नागरिकों का कर माफ कर दिया गया और बड़ी धूमधाम से बहुत दिनों तक नगर-भर में उत्सव मनाया जाता रहा।' राजा भरत को मर्धाभिषिक्त कहा गया है। सनत्कुमार चक्रवर्ती के राज्याभिषेक के अवसर पर उन्हें हार, वनमाल, छत्र, मुकुट, चामरयुग्म, दूष्ययुग्म, कुण्डलयुगम, सिंहासन, पादुकायुग्म और पादपीठ भेंट किये गये । ज्ञातृधर्मकथा में मेघकुमार के अभिषेक का सरस वर्णन है। मेघकुमार ने संसार से वैराग्य धारण कर दीक्षा लेने का निश्चय कर लिया था, लेकिन अपने माता-पिता की आज्ञा से केवल एक दिन के लिए राज-सम्पदा का उपभोग करने के लिए वे राजी हुए । अनेक गणनायक, दण्डनायक आदि से परिवृत हो, उन्हें सोने, चांदी, मणि-मुक्ता आदि के आठ-आठ सौ कलशों के सुगंधित जल से स्नान कराया गया। मृत्तिका, पुष्प, गंध, माल्य, औषधि और सरसों आदि उनके मस्तक पर फेंकी गयी, तथा दंदभि बाजों और जय-जयकार का घोष सुनाई देने लगा। राज्याभिषेक हो जाने पर समस्त प्रजा राजा को बधाई देने आती, तथा साधु-सन्त दर्शन के लिये उपस्थित होते। चंपा, मथुरा, वाराणसी, श्रावस्ती, साकेत, कांपिल्य, कौशांबी, मिथिला, हस्तिनापुर और राजगृह-इन दस नागरियों को अभिषेक-राजधानी कहा गया है।
राजभवन : राजप्रासाद राजा राजभवनों या प्रासादों में निवास करते थे। देवों के निवास स्थान को प्रासाद और राजाओं के निवास स्थान को भवन कहा है। प्रासाद ऊंचे होते हैं; उनको ऊंचाई, चौड़ाई की अपेक्षा
१. ३.६८, पृ० २६७-अ-२७०, आवश्यकचूर्णी, पृ० २०५ । २. निशीथभाष्य ६.२४६८ । ३. उत्तराध्ययनटीका ८, पृ० २४० ।
४. १, पृ० २८ इत्यादि । तथा देखिए महाभारत (शान्तिपर्व ३६); रामायण ( २. ३, ६; १४, १५, ४. २६. २० इत्यादि ); अयोधर जातक (५१० पृ० ८१-८२)।
५. उत्तराध्ययनटीका १८, पृ० २४८-अ । ६. निशीथसूत्र ६.१६ ।
७. अभयदेव, व्याख्याप्रज्ञप्तिटीका ५. ७, पृ० २२८ (बेचरदास, अनुवाद)।