Book Title: Jain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Author(s): Jagdishchadnra Jain
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

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Page 557
________________ ५३६ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज परिहार = संज्ञा = शौच ७४७ (वृ०) । पीढग ( पेढ ) = पीढ़ा ३२३८ पलास = पलाश = बड़ आदि के | -- (नि०) कोमल पत्ते (ढाक) ६१२ (नि०) पीढमद = मुँह से प्रियभाषी ६. ४६ पल्लंक = पलंग ८३० (६०) (व्य०) पव्वय = डोगर (डुंगर गुजराती में) पीढसप्पी = पंगु ३२५३ (६०) २४०६ (नि०) पुट्ट = पेट (पोट मराठी में) १४६४ पव्वोणि = संमुख ६.२६१ (व्य०) (६०) पहुग (पिहग ) = पृथुक = चौले पुताइ = पुताकी = उद्भ्रामिका = (पोहा मराठी में ) ३६४७ (बृ०) कुलटा ६०५३ (बृ.) पागयजण = साधारण जन १२१४ पुत्तलग = पुतला १६७ (नि०) (बृ०) पुरोहड = घर के पीछे का भाग = पाणंधि (पाणद्धि) = मार्ग २. २३ । बाड़ा २०६० (बृ.) (व्य०) पुसयति (पुसणे मराठी) = पूंछता पादपोस = पायुपोस = अपानद्वार । है ४५६ (बृ०) ११०८ (नि०) पूलिया = पूली ५५ (नि० च०) पारदोच्च-जहां चोर का भय न हो पूवलियखाओ-पूपलिकाखादकः ३६०५ (६०) पूआ खाते समय जो केवल चबपालु = अपान ३.४० (नि० स०) चब-शब्द करता है । ६० वर्ष का पासवण = प्रस्रवण = मूत्र १. १६ यह वृद्ध खाट से न उठ सकने (बृ० सू०) के कारण 'खट्वामल्ल' कहा पासे = पास ८६४ (६०) जाता है। खांसने और थकने पाहुडिया = भिक्षा १३३१ (नि०) में भी उसे कष्ट होता है २६२३-५ पाहुण = प्राघूर्णक = पाहुना १४८१ (६०) ' (बृ.) पेडण = मोरपंख ४६३८ (बृ.) पिंजिय = पीजना २६६६ (बृ०) पेलव = निःसत्व २२८५ (बृ.) पट सरति = जो बहुत टट्टी- 'पेलु (पेळ मराठी)= पूनी २६६६ पेशाब करता है ५६८५ (६०) (६०) पिट्ठ = पिट्ठी ( पीठ मराठी में) पोआल (पोळ मराठी) = सांड ३६२० (६०)। २. ७१ ( व्य०) पिटुंत-अपानद्वार ६. १४ (नि०सू०) पोच्चड ( पोचड मराठी ) = मैल पिहड = बर्तन १, पृ० १०२ अ ३७०४ (नि०) (व्य०) पोट्टल = पोटली ४६६६ ( बृ० ). पिहुजणो = पृथग्जन = लोग ३६ । पोम = पुष्प २८६ (नि०) (बृ०) पोस= मृगीपद = योनि ६. १४

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