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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [परिशिष्ट १
साढ़े पच्चीस आर्यक्षेत्र १-मगध ( बिहार ) ईसा के पूर्व छठी शताब्दी में जैन और बौद्ध श्रमणों की प्रवृत्तियों का मुख्य केन्द्र था। ईसा के पूर्व चौथी शताब्दी से लेकर ईसवी सन् की पांचवी शताब्दी तक यह एक समृद्धिशाली प्रदेश रहा है जबकि यहाँ का कला-कौशल उन्नति के शिखर पर पहुंच चुका था। चाणक्य के अर्थशास्त्र और वात्स्यायन के कामसूत्र की रचना यहीं पर हुई थी। यहां के शासकों ने जगह-जगह सड़क बनवाई तथा जावा, बालि आदि सुदूरवर्ती द्वोपों में जहांजों के बेड़े भेजकर इन द्वीपों को बसाया।
जैनसूत्रां में मगध को एक प्राचीन देश माना गया है और इसकी गणना सोलह जनपदों में की गयी है।' मगध भगवान् महावीर की प्रवृत्तियों का केन्द्र था, और उन्होंने यहां के जनसाधारण की बोली अर्धमागधी में निर्ग्रन्थ प्रवचन का उपदेश दिया था। मगध, प्रभास
और वरदाम की गणना भारत के प्रमुख तीर्थों में की गई है, जो क्रम से पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में अवस्थित थे। भरत चक्रवर्ती के दिग्विजय करने पर, यहां के पवित्र जल से उनका राज्याभिषेक किया गया था। मगधवासियों को अन्य देशवासियों की अपेक्षा बुद्धिमान कहा गया है। वे लोग किसी बात को इशारेमात्र से समझ लेते थे, जबकि कौशलवासी उसे देखकर, पांचालवासी उसे आधा सुनकर और दक्षिणदेशवासी उसे पूरा सुनकर हो समझ पाते थे।
१. शेष जनपदों के नाम हैं-अंग, बंग, मलय, मालवय, अच्छ, वच्छ, कोच्छ, पाढ, लाढ, वज्जि, मोलि ( मल्ल ), कासी, कोसल, अवाह, संभुत्तर, ( सुझोत्तर)-व्याख्याप्रज्ञप्ति १५ । तुलना कीजिए बौद्धों के अंगुत्तरनिकाय १,३ पृ० १६७ के साथ । यहां अंग, मगध, कासी, कोसल, वज्जि, मल्ल, चेति, वंश, कुरु, पंचाल, मच्छ, सूरसेन, अस्सक, अवंति, गंधार और कम्बोज नाम मिलते हैं।
२. स्थानांग ३.१४२; आवश्यकचूर्णी, पृ० १८६; आवश्यकनियुक्तिभाष्यदीपिका ११०, पृ० ९३-अ । ३. व्यवहारभाष्य १०.१६२ । तुलना कीजिए
बुद्धिर्वसति पूर्वेण दीक्षिण्यं दक्षिणापथे । पैशून्यं पश्चिमे देशे पौरुष्यं चोत्तरापथे ॥
___गिलगित मैनुस्किप्ट ऑव द विनयपिटक, इण्डियन हिस्टोरिकल क्वार्टी, १६३८, पृ० ४१६ । ..