Book Title: Jain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Author(s): Jagdishchadnra Jain
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

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Page 551
________________ ५३० जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज कुवणय ( कोणअ ) = लाठी ६१५ | खग्ग = गेंडा २०२ (नि०) (बृ.) खग्गूड = कुटिल ३२२ (पिं०) कुसण = मूंग-दाल आदि का पानी | खग्गूड = स्निग्ध मधुर आहार आदि ४०३७ (बृ.)। में लंपट; निद्रालु १५२६, १५४३ कुसीलव = नट ६४१ (६०) कुहाड (कोहाडग ) = कुहाडा खट्टिक = खटीक ५२२ (निचू०) २२६ ( बृ०) | खडक्किका = खिड़की ६२२ (ओ० कूयर = कुचर = जार,उपपति टी०) २६५६ (६०) | खडुगा = खलुक्का = टक्कर ६४१३ कृविया = कूजका = कूजा = कुप्पी (नि०) ११६ ( पि०) | खद्ध = प्रचुर १४८८ (६०) कोटिंटब = नाव ३५७८ (नि०) । खद्धादाणि = ऋद्धि-सम्पन्न ३१८६ कोडिय = संकोचित ४०११ (६०) | (नि.) कोढ = कोढ़ १०२४ (६०) | खरकम्मिय = राजपुरुष = दंडपाकोण = कोना ६६६ (बृ०) शिक = कोतवाल ३७६७ (६०) कत्थलकारी=भ्रमरी १७८७ (बृ०) | खरमुही = नपुंसक दासी ६. ६६ कोनाली = गोष्ठी २३६६ (बृ० । (व्य०) कोयव =रूई से भरा वस्त्र ३८२३ .. (६०) खरि = द्वयक्षरी-दासी २४१८ (बृ०) कोल्लुग ( कोल्हा मराठी ) = | खलखिल-निर्जीव ६. ३६६ (व्य०) गीदड़ १३४६ (नि०) खलहाण = खलिहान-३१८० कोल्हुक = कोल्हू ३६४८ (६०) (नि०) खल्लअ = खल्लक = पत्तों का दोना २७१४ (बृ०) खंजण = काजल ( दीपमल ) । खुदु = क्षुल्लक ४. ३१६ (व्य०) २८३२ (६०) खुरप्पग = खुरपा ३०२२ (नि०चू०) खंडी = छोटा द्वार २२६४ (बृ०) खुल = रूक्ष भोजन करने से दुर्बल खंत = पिता ४६२६ (६०) १५५६ (६०) खंतलक्खण = वृद्ध व्याज २३६ खुलखेत - जहां बहुत कम लोग (बृ०) भिक्षा देने वाले हों १२५६ (६०) खउर = चिक्कण द्रव्य ( खैर वगैरह खुळय = पत्ते का दोना २. २६ का चिकना रस ) = गोंद ३८२८ | (व्य० सू०) . (बृ०) खिसिज्ज = खींसना १२६० (६०) खउरिअ = कलुषित ३७३० (६०) | खेरि = नाश ३३५७ ( बृ०)

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