Book Title: Jain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Author(s): Jagdishchadnra Jain
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan
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असिलाय = विस्वर ४५७२ (बृ० ) अस्सतर=त्रेगसर=भच्चर ५१ ( बृ० ) अहिमर - साहसी चोर १३० (बृ०)
आ
आचुसिज्ज = चूसना १७०
परिशिष्ट ३
(नि० चू० )
आढा = आदर २६७९ ( बृ० ) आणट्ठवण = आज्ञा स्थापन २४८६
(बृ० )
आदेस = पाहुना ५४४ ( बृ० ) आर = संसार ३१६ ( बृ० ) आलवण = आलपन १५७१ ( बृ०) आसियावण = अपहरण २७८६
( बृ० )
आहट्ट = पहेली १३०१ ( बृ० )
इ
इक्कड
= लाट देश में होने वाला एक प्रकार का तृण ८८७ (नि०) इड्डर = गाड़ी ४७६ ( ओ० ) इत्तिरिय = थोड़े समय के लिये ३३० (नि० ) इलय = छुरी ३२ (नि० चू० ) इलिया = इल्ली १२० (नि० ) अपोत = आकीर्ण ३१७२ (बृ० ) . उंडिम = लेख की मुद्रा १८६ (बृ०) उदुय =उंदुक=स्थानम् १२२३
बृ०)
"
|
उंदुर = उंदीर ( मराठी ) = चूहा ८०० (नि० ) उक्कुरुड ( उकरडी गुजराती ) = कूरडी = कचरे का ढेर १६२५ (बृ०) उक्ख - जैन साध्वियों का एक वस्त्र (परिचाणवत्थस्स अब्भितरचूलाए
५२७
उवरिकण्णो नाभिट्ठा उबखो भण्णइ ) २०६७ ( बृ० ) उक्ख ( उच्छ ) = बैल ३. १५०
( व्य० )
उक्खल =
- उदूखल = ओखली २६४२ ( बृ० ) उक्खलिया = थाली ८०८ (नि० ) उग्घाड = उघाडना २३५ (नि० ) उच्छुद्ध = परित्यक्त ३१३२ (बृ० ) उज्जल्ल - अत्यन्त मलिन शरीर वाला २४५७ (बृ० ) उज्झायणा = दुर्गन्धि ३६६७ (बृ०) उड्डंचक = उपहास ५४८ ( बृ० ) उड्ड = उड़ना १०० (बृ० ) उड्डण = अङ्गीकार ३.७२ (व्य० ) उड्डयर = जो शौच करते समय चंचलता के कारण शौच में अपना हाथ खराब कर लेता है १७४१ ( बृ० )
उड्डहन = गधे आदि पर चढ़ाना २५०० (बृ० )
उत्तरोट्ठरोम = मूंछ ३५६
(नि० सू० ) उत्तिंग = चींटियों का बिल ७. ७४ (नि० सू० चू० )
>)
उत्तइअ = गर्विष्ठ २. ३०७ (व्य० उत्तेडा = बिन्दू १६ ( पि० ) उद्दद्दर = अनंतरोक्तम् २७८ ( वृ०) उदसी = उदश्वित् = मट्ठा ५६०४ ( बृ० ) उदुण्डक = उपहास के योग्य ४००२ (बृ० ) उदूढ = चुराया हुआ २६१६ (बृ०) उप्पलज्जं = उत्पलार्य = साधु २६४२ ( बृ ) ०

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