Book Title: Jain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Author(s): Jagdishchadnra Jain
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan
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परिशिष्ट ३ बृहत्कल्पभाष्य (बृ.), व्यवहारभाष्य (व्य० ), निशीथभाष्य (नि०; सू = सूत्र, - चू= चूर्णी ), पिंडनियुक्ति (पिं०) और ओघनियुक्ति (ओ०) के भाषाशास्त्र की दृष्टि से चुने हुए कतिपय महत्वपूर्ण शब्द |
अणुरंगा=गाड़ी १६१६ (६०) अंगादाण =जननेन्द्रिय (अंगंसरीरं अतर (अयर)=रोगी ३८६२ (बृ०) सिरमादीणि वा अंगाणि तेसिं अताण = कन्धे पर लाठी रखकर आदाणंअंगादाणंप्रभवो प्रसूतिः) चलने वाले मुसाफिर २७६६ (६०)
(नि० सू० १. २ चू०) अत्थग्घ =अथाह १६६ (नि.) अंगोहलि ( अंघोळ मराठी और अत्थारिअ = नौकर-चाकर ६. २०८ गुजराती में; अंग + होळ)=स्नान
(व्य०) __१०.३८० ( व्य० टीका) अद्दण्ण =विषादयुक्त २६८६ (नि०) अंगुट्ठपोर= पोरवे ११२७ (नि०) अदाग-आदर्श-दर्पण ८१२ (६०) अंबकुज्ज-पाँव का तलवाह२८ (नि०) अप्पज्झ=आत्मवश ३७३२ (६०)
। अप्पदण्ण =आत्मरक्षा में तत्पर विली=इमली ३७६६ (बृ.)
११५३ (६०) अक्खाड=अक्षवाट = अखाड़ा
| अप्पाहण-संदेश देना २३६ (बृ०) ११०७ (बृ.)
अमिला=भेड़ २५३५ (६०) अगंठिम=जिसमें गांठ न हो =
अरहट्टरहट ८२६ (६०) केला ३०६३ (६०)
अरुग-व्रण ४१०४ (६०) अच्छोड= कपड़ों को पत्थर पर
अलस=गडूल (गांडूळ मराठी में) पीटकर धोना ३४ (पि.)
-सुसणाग केचुआ१७१ (नि.) अजाणग=न जानने वाला ६३७ |
| अवतंस= पुरुषव्याधि नामक (बृ.)
रोग ६३३६ (६०) अट्ठाहिया =अठांही ( अष्टाह्निका
अवसावण = कांजी ( उसावण नामक एक जैन पर्व) ३१५० (६०)
(१०) गुजराती में ) ३०६६ (६०) अडोलिया = उंदोइया = गिल्ली
| अवोगिल्ल - जो वाचाल न हो
११५७ (बृ०) ७. १२६ (व्य०) अडवियड अर्दवित ४६२२ (बृ०) अव्वो=अप्पो (अप्प कन्नड़ में)अणल=अयोग्य ५७८३ (बृ.) पिता ६११६ (बृ०). अणिय ( अणिया मराठी में )= असंखड = कलह ५४७ (६०) अग्रभाग ६७७ (नि०) ... ! असारिय-निर्जन ५१५४ (बृ० टी०)

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