________________
पाँच खण्ड ]
दूसरा अध्याय : लौकिक देवी-देवता
४४१
बदल दिया । आगे चलकर कृष्ण द्वारा हरिणेगमेषी को आराधना किये जाने पर, देवकी के गजसुकुमार नामक पुत्र हुआ । '
यक्ष हानि भी पहुँचा सकते थे, और लोगों का वध कर प्रसन्न होते थे । शूलपाणि वर्धमानक गांव का एक प्रसिद्ध यक्ष था । उसने क्रुद्ध होकर गांव में महामारी फैला दी जिससे लोग गांव छोड़कर भागने लंगे । महामारी का उपद्रव फिर भी शान्त न हुआ । यह देखकर लोग वापस लौट आये। वे नगर-देवता के समक्ष विपुल उपहार लेकर उपस्थित हुए और उससे क्षमा मांगने लगे । यक्ष ने कहा कि यदि तुम मनुष्यों की हड्डियों पर देवकुल बनाने को तैयार हो तो महामारी शान्त हो सकती है । गाँववालों ने यक्ष के देवकुल में पूजा-अर्चना करने के लिए इन्द्रशर्मा नाम का एक पुजारी रख दिया । उस समय से यह गाँव अट्ठिगाम ( अस्थिप्राम ) कहा जाने लगा । 3
साकेत के उत्तर-पूर्व में सुरप्रिय यक्ष का आयतन था । वह प्रति वर्ष चित्रित किया जाता था और लोग उसका महान् उत्सव मनाते थे । लेकिन जो चित्रकार उसे चित्रित करता, यक्ष उसे मार डालता । यदि यक्ष चित्रित न किया जाता तो वह महामारी फैला देता । यह. देखकर जब नगर के सब चित्रकार भागने लगे तो राजा ने सब चित्रकारों को इकट्ठा किया और सबके नाम लिखकर एक घड़े में डाल दिये । ये नाम प्रति वर्ष घड़े में से निकाले जाते, और जिस चित्रकार का नाम निकलता उसे यक्ष को चित्रित करना पड़ता । एक बार कौशाम्बी से भागकर आये हुए किसी चित्रकार के लड़के की बारी आयो । उसने उज्ज्वल वस्त्र पहन, अपनी नयो कूंची से यक्ष को चित्रित किया । यक्ष सन्तुष्ट होकर उससे वर मांगने को कहा | चित्रकार ने चाहा कि द्विपद, चतुष्पद आदि प्राणियों के केवल एक भाग को देखकर वह उन्हें पूर्ण रूप से चित्रित कर सके । यक्ष ने प्रसन्न होकर वरदान दे दिया । "
जैनसूत्रों में इन्द्रग्रह, धनुर्मह, स्कंदमह, कुमारग्रह और भूतग्रह के
१. अन्तःकृद्दशा २, पृ० १५ ।
२. जातकों के लिए देखिए मेहता, वहीं, पृ० ३२४ ।
३. आवश्यकचूणी, पृ० २७२-७४ ।
४. वही पृ० ८७ आदि ।