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च० खण्ड] तोसरा अध्याय : स्त्रियों की स्थिति २५५
विवाह के लिये शुल्क विवाह में वर अथवा उसके पिता द्वारा, कन्या के पिता अथवा उसके परिवार को शुल्क देना पड़ता था। कनकरथ राजा के मन्त्री तेयलीपुत्र का उल्लेख किया जा चुका है। पोट्टिला मूषिकादारक नामक सुनार की एक सुन्दर कन्या थी। एक दिन स्नान आदि कर और सर्वालंकार भूषित हो, अपने प्रासाद पर बैठी हुई अपनी चेटियों के साथ वह गेंद खेल रही थी। इधर से तेयलिपुत्र अश्व पर आरूढ़ हो, अश्ववाहनिका के लिए जा रहे थे । तेयलिपुत्र पोट्टिला के रूप-लावण्य को देखकर मुग्ध हो गया । उसने अपने विश्वस्त पुरुषों को बुलाकर मूषिकादारक के पास कन्या को मंगनी के लिए भेजा। उन्होंने जब कन्या के शुल्क के सम्बन्ध में प्रश्न किया तो कन्या के पिता ने उत्तर दिया-"मेरा यही शुल्क है कि स्वयं मंत्री मेरी कन्या से विवाह करना चाहते हैं।” कुछ समय बाद, शुभ तिथि में पोट्टिला को स्नान आदि करा और पालको में बैठाकर मूषिकादारक अपने इष्ट-मित्रों के साथ तेयलिपुत्र के घर गया। वहां वर और वधू दोनों एक पट्ट पर बैठे, श्वेत और पीत कलशा से उन्हें स्नान कराया गया, अग्निहोम हुआ और तत्पश्चात् दोनों का पाणिग्रहण सम्पन्न हुआ। कोई व्यापारी अपनी स्त्री से इसलिए अप्रसन्न था कि न तो वह नौकरों से ठीक तरह काम करा सकती थी और न उन्हें ठीक समय पर भोजन ही देती थी। उसने उसे घर से निकाल दिया और बहुत-सा शुल्क देकर दूसरा विवाह किया । किसी चोर के पास बहुत-सा धन था, उसने यथेच्छ शुल्क देकर किसी कन्या से विवाह किया।३ अंग देश के राजा चन्द्रच्छाय ने मिथिला की राजकुमारी मल्लि की कीमत आंकते हुए बताया कि सारा राज्य उसके लिए पर्याप्त होगा। चंपा के कुमारनंदी सुवर्णकार ने पाँच-पाँच सौ सुवर्ण देकर अनेक सुन्दरी कन्याओं के साथ विवाह किया ।
१. ज्ञातृधर्मकथा १४, पृ० १४८ आदि; तथा विपाकसूत्र ९, पृ० ५२-५५ । २. उत्तराध्ययनटीका ४, पृ० ९७ । ३. उत्तराध्ययनचूर्णी, पृ० ११० । ४. ज्ञातृधर्मकथा ८, पृ० १०३ । ५. आवश्यकचूर्णी, पृ०८९।