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४३४ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [पांचवां खण्ड के दहनकर्ता और स्कन्द के पिता माने गये हैं। संसार को ध्वंस कर देनेवाले विषका पान करना, दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर देना और आकाश से गिरतो हुई गंगा को अपने जटा-जूट में धारण करना-ये उनके मुख्य कार्य माने जाते हैं। पर्वत-देवता के रूप में, उनके सम्मान में, वैशाख में उत्सव मनाया जाता है। शिव को उमापति भी कहा गया है।'
जैन परम्परा के अनुसार, शिव अथवा महेश्वर चेटक की पुत्री सुज्येष्ठा के पुत्र थे । सुज्येष्ठा प्रबजित होकर किसी उपाश्रय में आतापना कर रही थी। इसी समय पेढाल नामक परिव्राजक विद्या देने के लिए किसी योग्य व्यक्ति की खोज में निकला। उसने सोचा यदि किसी ब्रह्मचारिणी से पुत्रोत्पत्ति हो तो विद्या सुरक्षित रह सकती है। यह सोचकर पेढाल ने सुज्येष्ठा को धूमिका से व्यामोहित कर उसमें बीज प्रक्षिप्त कर दिया। कालान्तर में उसके गर्भ से सत्यकी उत्पन्न हुआ । सत्यको विद्याओं का पारगामी हो गया। महारोहिणी नाम की विद्या ने उसके मस्तक में एक छिद्र किया और वह उसके शरीर में प्रविष्ट हो गयी। देवता ने इस छिद्र को तीसरी आँख में परिणत कर दिया । कुछ समय के पश्चात् सत्यकी ने अपने पिता पेढाल का इसलिए वध कर दिया कि उसने राजकुमारी सुज्येष्ठा के सतीत्व को भ्रष्ट किया था। अब सत्यकी विद्याचक्रवर्ती हो गया। इन्द्र ने इसका नाम महेश्वर रखा । महेश्वर ब्राह्मणों से द्वेष रखता था, इसलिए उसने ब्राह्मणों की सैकड़ों कन्याएं भ्रष्ट कर डालों। वह राजा प्रद्योत के अन्तःपुर में भी उसकी रानियों के साथ क्रीड़ा किया करता । शिवा को छोड़ कर उसने सब रानियां को भ्रष्ट कर दिया था। इसके पश्चात् महेश्वर उज्जैनी की रूपवती गणिका उमा के साथ रहने लगा। एक बार जब महेश्वर उमा के साथ रमण कर रहा था, प्रद्योत ने अपने नौकर भेजकर उसकी हत्या करा दो। जब महेश्वर के मित्र नंदीश्वर को इसका पता लगा तो वह विद्याओं से अधिष्ठित होकर, एक शिला द्वारा नगरवासियों को हत्या करने के लिए आकाश में जा पहुँचा | यह देखकर राजा नगरवासियों को साथ ले, गीले वस्त्र पहन, नंदोश्वर के
दिसम्बर, १९३२, पृ० २६४ आदि; तथा देखिए रोज़, ट्राइब्स एण्ड कास्ट्स ऑव पंजाब एण्ड नार्थ वैस्टर्न प्रोविन्स, जिल्द १, पृ० २६० आदि ।
१. हॉपकिन्स, वही, पृ० २१६-२६ । .