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च० खण्ड ]
छठा अध्याय : रीति-रिवाज
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अतिरिक्त, लोग नदीमह, तडागमह, वृक्षमह, चैत्यमह, पर्वतमह, गिरियात्रा, कूपमह, वृक्षारोपणमह, चैत्यमह और स्तूपमह के उत्सवों में सम्मिलित होकर आनन्द मनाते थे । '
पर्व र उत्सव
जैनसूत्रों में अनेक उत्सवों और पर्वों के उल्लेख मिलते हैं । पुण्णमासिणी (पौर्णमासी) का उत्सव कार्तिक पूर्णमासी के दिन मनाया जाता था । इसे कौमदी - महोत्सव भी कहते थे । उत्सव में जाते समय यदि कदाचित् जैन श्रमणों के दर्शन हो जाते तो लोग अमंगल ही समझते । सूर्यास्त के बाद, स्त्री-पुरुष किसी उद्यान आदि में जाकर रात व्यतीत करते । मदनत्रयोदशी के दिन कामदेव की पूजा की जाती उज्जाणिया महोत्सव के अवसर पर नगर के नर-नारो मत्त होकर विविध प्रकार से क्रीड़ा करते थे । एक बार यह उत्सव सिंधुनंदन नगर में मनाया जा रहा था । उस समय नर-नारियों का कोलाहल सुनकर राजा का प्रधान हस्ती अपने महावत को मारकर जुलूस की भीड़ में आ घुसा |" इन्द्र, स्कंद, यक्ष और भूतमह ये चार महाउत्सव माने गये हैं। इन महोत्सवों पर लोग विविध प्रकार के अशन-पान का उपभोग करते हुए आमोद-प्रमोद में अपना समय व्यतीत करते थे । मथुरा के लोग भंडीर यक्ष को यात्रा के लिए जाते थे । बहुमिलक्ख मह
१. ज्ञातृधर्मकथा १, पृ० २३; जीवाभिगम ३, पृ० १५१-अ । निशीथसूत्र १२.१६ में ग्राम, नगर, खेड, कन्नड, मडंब, दोणमुह, पट्टण, आगार, संवाह और सन्निवेसमह का उल्लेख है । पर्वतपूजा का अर्थशास्त्र, ४.३.७८.४४, पृ० ११४ में उल्लेख है । नदी और वृक्ष पूजा के लिए देखिए रोज़ का ट्राइब्स एण्ड कास्ट्स ऑव द पञ्जाब एण्ड नौर्थ-वेस्टर्न प्रॉविन्स, जिल्द १, पृ० १३४ आदि ।
२. बृहत्कल्पभाष्य १.१४५१ । तथा देखिए वट्टक जातक ( ११८ ), १, पृ० ३३ आदि ।
३. सूत्रकृतांगटीका २.७५, पृ० ४१३ । देखिए चकलदार, कामसूत्र, पृ० १७० ।
४. ज्ञातृधर्मकथाटीका २, पृ० ८०-अ।
५. उत्तराध्ययनटीका १८, पृ० २४६-अ ।
६. निशीथसूत्र १९.११ ।
७. आवश्यकचूर्णी, पृ० २८१ ।