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दूसरा अध्याय : न्याय-व्यवस्था
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न्यायालय में पहुँचकर तीनों अभियोक्ताओं ने अपने-अपने बयान दिये और राजा से प्रार्थना की कि अभियुक्त को उचित दण्ड दिया जाये । अभियुक्त ने राजा को सब बातें सच-सच कह दीं। अभियुक्त की बात सुनकर राजा ने अपना फैसला सुनाया ।
बैलों के मालिक से उसने कहा कि अभियुक्त उसके बैल वापिस देगा, लेकिन पहले वह उसे अपनी आँखें निकाल कर दे ।
घुड़सवार से कहा कि अभियुक्त उसे घोड़ा वापिस देगा, लेकिन पहले वह उसे अपनी जीभ काट कर दे ।
नटों से उसने कहा कि अभियुक्त को प्राणदण्ड दिया जायेगा, लेकिन इसके पहले वह बरगद के पेड़ के नीचे सो जाये और उन लोगों में से कोई अपने गले में फंदा लगाकर पेड़ पर से गिरने के लिए तैयार हो ।
कोई किसान अपनी गाड़ी में अनाज भरकर शहर में बेचने जा रहा था । उसकी गाड़ी में तीतर का एक पिंजड़ा बँधा था। शहर पहुँचने पर गंधी के पुत्रों ने किसान से पूछा - " यह गाड़ी - तीतर (गाड़ी में लटके हुए पिंजड़े का तीतर, अथवा गाड़ी और तीतर) कैसे बेचते हो ?” उसने कहा - " एक कार्षापण में ।" गंधी के पुत्र एक कार्षापण देकर उसकी गाड़ी और तीतर दोनों लेकर चलते बने।
किसान को बड़ा दुख हुआ कि केवल एक कार्षापण में उसकी अनाज से भरी गाड़ी और तीतर दोनों ही चल दिये। उसने राजकुल में मुकदमा किया, लेकिन वह हार गया ।
जब किसान राजकुल से लौट रहा था तो रास्ते में उसे एक कुलपुत्र मिला । किसान ने कुलपुत्र से अपने ठगे जाने का सब हाल कहा । कुलपुत्र ने कहा - " चिन्ता न करो। देखो, तुम अपने बैल लेकर गंध के पुत्रों के पास जाओ और उनसे कहो कि गाड़ी तो मेरो अब चली ही गई, ये बैल भी तुम्हीं ले लो। इनके बदले केवल दो पायली सत्तु दे दो तो मैं खुश हो जाऊँगा । लेकिन यह सत्तु मैं अलंकारविभूषित तुम्हारी मातेश्वरी से स्वीकार करूँगा, किसी दूसरे से नहीं ।" किसान से वैसा ही कया । गंधीपुत्र किसान को सत्तु देने को तैयार हो गया । लेकिन गंधी की मातेश्वरी ने ज्योंही किसान को सत्त देने के
१. आवश्यकचूर्णी, पृ० ५५५–५६ ।