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जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज
दीक्षा ग्रहण कर ली । संयोगवश कुछ समय बाद राजा को मृत्यु गयी । मन्त्रियों ने राजलक्षणों से युक्त किसी पुरुष की खोज करना आरम्भ किया, लेकिन सफलता न मिली। इतने में पता चला कि उक्त तीनों राजकुमार मुनिवेष में विहार करते हुए नगर के उद्यान में ठहरे हुए हैं । मन्त्रीगण छत्र, चमर और खड्ग आदि उपकरणों के साथ उद्यान में पहुँचे । राजपद स्वीकार करने के लिए तीनों से निवेदन किया गया। पहले ने दीक्षा त्याग कर संसार में पुनः प्रवेश करने से मना कर दिया, दूसरे को आचार्य ने साध्वियों के किसी उपाश्रय में छिपा दिया । लेकिन तीसरे ने संयम के पालन करने में असमर्थता व्यक्त की । मन्त्रियों ने उसे नगर में ले जाकर उसका राज - तिलक कर दिया । '
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उत्तराधिकारी चुनने का एक और भी तरीका था। नगर में एक दिव्य घोड़ा घुमाया जाता और वह घोड़ा जिसके पास जाकर ठहर जाता उसे राजपद पर अभिषिक्त कर दिया जाता । पुत्रविहीन बेन्यातट के राजा की मृत्यु होने पर उसके मन्त्रियों को चिन्ता हुई । वे हाथी, घोड़ा, कलश, चमर और दण्ड इन पाँच दिव्य पदार्थों को लेकर किसी योग्य पुरुष की खोज में निकले। कुछ दूर जाने पर उन्होंने देखा कि मूलदेव एक वृक्ष की शाखा के नीचे बैठा हुआ है । उसे देखते ही हाथी ने चिंघाड़ मारी, घोड़ा हिनहिनाने लगा, कलश जल के द्वारा उसका अभिषेक करने लगा, चमर उसके सिर पर डोलने लगा और दण्ड उसके पास जाकर ठहर गया । यह देखकर राजकर्मचारी जयजयकार करने लगे । मूलदेव को हाथी पर बैठाकर धूमधाम से नगर में लाया गया तथा मन्त्रियों और सामन्त राजाओं ने उसे राजा घोषित किया | राजकुमार करकण्डु के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार की
१. बृहत्कल्पभाष्यं ३.३७६०-७१; तथा व्यवहारभाष्य ३.१६२, पृ० ४० । २. कथाकोश ( टौनी का अंग्रेजी अनुवाद, पृ० ४ का नोट ) में जल का कलश लिए हाथी सात दिन तक इधर-उधर घूमता-फिरता है, उसके बाद वह जिस पुरुष के सामने जाकर खड़ा हो जाता है, उसे राजा बना दिया जाता है ।
३. उत्तराध्ययनटीका ३, पृ० ६३ - श्र । श्रपपातिक सूत्र २, पृ० ४४ में खड्ग, छत्र, उप्फेस ( मुकुट ), वाहण (पादुका) और वालव्यजन, ये पाँच दिव्य पदार्थ बताये गये हैं । जातक के अन्तर्गत विदूरेनिदान में खड्ग, छत्र, पगड़ी, पादुका तथा व्यजन इन पाँच ककुभांडों का उल्लेख है, जातक प्रथमखण्ड, पृ० ६६।