Book Title: Jagad Guru Hir Nibandh
Author(s): Bhavyanandvijay
Publisher: Hit Satka Gyan Mandir

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अग्नि में गला कर वृषभ की मूर्ति बनवा कर श्री अचलेश्वर देव के सन्मुख स्थापित करदी। इस घोर पाप के कारण राजा के शरीर में दुष्ट कुष्ठ रोग का आविर्भाव हुआ । इस कोढ़ रोग से राजा के तेज लावण्यादि सम्पूर्ण गुण नष्टभ्रष्ट हो गये। राजा ने अपने नाम से प्रल्हादनपुर नाम का शहर बसाया। कर्म संयोग से किसी परोपकारी महात्मा ने राजा का पाप और रोग नाशक उपाय बताया कि पार्श्व प्रभु की मूर्ति बना कर निज मन्दिर में स्थापन कर पूजा भक्ति करने से सब रोग शोक नाश हो जायगा। इस बात को सुनकर राजा ने तुरन्त प्रल्हादन विहार नाम का चैत्य सुन्दर बनवाया और प्रतिष्ठा पूर्वक श्री पार्श्व प्रभु की मनोहर प्रतिमा स्थापित कर त्रिकाल पूजा भक्ति करने लगा। अल्प समय में ही राजा का शरीर आरोग्यमय होकर पूर्व की भांति चमकने लगा। राजा के आदेश से समस्त नागरिक प्रभु दर्शन से मानव जन्म की सार्थकता समझने लगे। कहावत भी है कि “यथा राजा तथा प्रजा ।" इसी प्रल्हादनपुर का अपभ्रंश होकर पालनपुर नाम जाहिर हो गया है । जोकि गुजरात के उत्तरी किनारे पर आज भी विद्यमान है। यह उस समय बड़ा समृद्धिशाली शहर था। किसी प्रकार से शहर वासियों को अशान्ति नहीं थी। इसी विशाल शहर में उपकेशवंश भूषण धनाढ्य एक कुंराशाह नाम का सेठ रहता था । वह सज्जन पुरुष दया दाक्षिण्यादि गुणों से युक्त था। इतना ही नहीं बल्कि ब्रह्मचारी गृहस्थों में मुकुटालंकार माना जाता था। आप प्रभु भक्त गुरु विनयी एवं धर्म के बड़े तत्वज्ञ थे । आपके सहचारिणी पतिव्रता धर्म में आसक्त एक नाथीदेवी नाम की भार्या थी। वह भी सुशीला और धर्मात्मा थी। कुंराशाह सेठ के साथ सांसारिक सुखों का अनुभव करती हुई नाथीदेवी ने उत्तम गर्भ को धारण किया । जिस रात्रि में गर्भ धारण किया उस रात्रि में हीरा की राशी For Private and Personal Use Only

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