Book Title: Jagad Guru Hir Nibandh
Author(s): Bhavyanandvijay
Publisher: Hit Satka Gyan Mandir

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Page 61
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसलिये आत्मा और कर्म दोनों अनादि सम्बन्धित है और वह दूध और पानी की तरफ से श्रोत-प्रोत है। इस प्रकार गुरुदेव के मुखारबिन्द से प्रश्नोत्तर की सरलता से समझकर बारम्बार सांजलि नमस्कार करते हुए अकबर ने कहा हे गुरुदेव ! इतने दिन आपके चारित्र में ही मुग्धता थी लेकिन आज तो आपकी विद्वत्ता के परिचय से भी मुग्ध हुआ हूँ। अब आप से प्रार्थना है कि मेरी आत्मा का कल्याण जिस तरह हो वैसा. सुगमता का मार्ग कृपया बताइये, खास आत्मा की खोज में बहुत दिनों से लगा था लेकिन आपके जैसा महात्मा कोई नहीं मिला था, हे महाराज! आप सर्व शास्त्रतत्वज्ञ एवं आत्मज्ञ हैं आपसे कोई बात छिपी हुई नहीं है अतः कृपया यह बताइये कि मेरी जन्म कुन्डली में मीनराशि पर जो शनिश्चर आया हुआ है उसका मुझे फल क्या होगा ? इस पर सूरिजी ने उत्तर दिया कि पृथ्वीपते ! यह फलाफल बताने का काम ज्योतिषि गृहस्थियों का है जिसको अपनी जीविका चलानी पड़ती है वे ही इन बातों का विशेष ध्यान रखा करते हैं हमको केवल मोक्ष मार्ग के साधन भूत ज्ञान की आकांक्षा रहती है और तदर्थ ही हम लोग श्रवण मनन और प्रवचन किया करते हैं अकबर के बारम्बार हठाग्रह के पश्चात् सूरिजी ने कहा, आत्मजिज्ञासो ? आप कुडलीस्थ ग्रहों की शंका न करके आत्म साधनभूत ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करें क्योंकि आत्म जिज्ञासुओं के लिये इतर की खोज और शंका व्यर्थ ही हुआ करती है ! इधर सूर्यास्त होने जा रहा है, गुरुदेव के प्रतिलेखन (पडिलेहन विशेष क्रिया) का समय उपस्थित हो रहा है। सभा में विद्वदगोष्ठी करते हुए पंडित शान्तिचन्द्रजी तथा समस्त सभासद गुरुदेव और बादशाह के आने में विलम्ब देखते हुए तर्क वितर्क में मस्त हो बैठे है, सभा के बाहर द्वारपालों का मन विव्हल हो रहा है कि अभी For Private and Personal Use Only

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