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निर्धन पेथड जिनकी कृपा से, बने बड़ा दिवान । शासन का झंडा फहरावे, गुरु कृपा बलवान ॥६॥ जिनके वचन से यक्ष कपर्दी, छोड़े मांस बलिदान । सेवक होकर शत्रुजय पर, पावे अपना स्थान ॥७॥ जोगणियों ने कारमण कीना, चहा मुनियों का प्राण । उनको पाटे पर चिपटा कर, दिया गुरु ने ज्ञान ||८|| गुरु के कंठ को मंत्र से बांधा, यु ली उनसे वाण । तपगच्छ को उपद्रव नहीं करना, स्थंभित कर अज्ञान ॥६॥ एक योगी चूहे के द्वारा, करे गच्छ को परेशान । उसके उपद्रव को हटाया, पाया बहु सन्मान ।।१०।। रात में गुरु का पाट उठावे, गोधरा शाकिनी जाण । उनसे भी तब मुनि रक्षा का, लीना वचन प्रमाण ।।११।। सांप काटते कहा संघ से, अपना भविष्य ज्ञान । संघ ने भी वह जड़ी लगाई, हुए गुरु सावधान ॥१२॥ भस्म ग्रह की अवधि होते, शासन के सुल्तान ।
आनंद विमल गुरु जिन्हों को, नमे राज सुर त्राण ||१४|| क्रियोद्धार से मुनि पंथ को, उद्धरे युग प्रधान । ज्ञान कृपा से दूर हटावे, कुमति का उफाण ।। आ ॥१४॥ जेसलमेर मेवात मोरवी, वीरमगाम मैदान । सत्य धर्म का झंडा गाड़ा, दिन दिन बढ़ते शान ।। आ ।।१५।। मणिभद्र सेवा करे जिनकी, विजय दान गुरु मान । उनके पट प्रभाविक सूरि, हीर हीराकी खाण ॥ आ ॥१६।। इन गुरुओं की करे आशातना, वह जग में हैवान । भक्ति नीर से चरणों पूजे, चारित्र दर्शन ज्ञान || आ ॥१७॥
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