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: कलश: (राग-बढस-अब तो पार भये हम साधो) आज तो जगद् गुरु गुण गाया, आनद मंगल हर्ष सवाया वीर जगत गुरु पाट परम्पर, हुए सूरि गणी मुनिराया हुए बुद्धि विजय गणि जिनने, संवेगरंगका कलश चढ़ाया आपके आदिम पट्ट प्रभावक, मुक्ति विजय गणि शासन राया आपके पट्ट में विजय कमल सुरि, स्थविर विनय विजयजी गवाया आपके शिष्य शासन दीपक, श्री चारित्र विजय गुरु राया आदिम जैन गुरु फूल स्थापक, जिनके यश का पार न पाया आपके सेवक दर्शन ज्ञानी, न्याय ने जयपुर में गुण गाया संवत् उन्नीसौ सत्ताणं, जगत् गुरु का दिन मनाया तपगच्छ मन्दिर में जग गुरु के, चरण कमल सबको सुख दाया सेवे भंडारी कोचरजी, चोरडिया पालरेचा सुहाया म्हेता छाजड वेद सचेती, ढडढा गोलेच्छा सुखपाया ढौर गोहेलडा बम छजलानी, नौलखी सिंघी व खीसरा भाया कोठारी लोढा करणावट, बाफणा पटनी शाह उमाया जोहरी हरखावत पोरवाली, श्री श्रीमाल है भक्ति रंगाया संघ ने मिल कर भाव सवाया, गुरु पूजन का पाठ पढाया शिर नमाया जय जय पाया, चारित्र दशेन नाद गजाया
दादा साहब की आरती आरती श्री गुरुदेव चरण की कुमति निवारण सुमति पुरण की ।। आ० ॥ टेर ।। पहेली आरती श्री गुरुदेव की दुरित निवारण पुण्य करण की ।। अ० ॥ १ ॥ दूसरी आरती धरम धरन की अशुभ करमदल दूरी हरण की ॥ प्रा० ॥ २ ॥
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