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अकबर से पाकर जमीन, लाडकी करे वहां स्तूप । जो परतिख परचा पूरे, नमे देव नर भूप ॥ ३ ॥ आबू पाटण स्थंभना, राजनगर जयकार । सूरत हैद्राबाद में, बने श्री हीर विहार ॥४॥ आगरा महुवा मालपुर, पटणा सांगानेर । नमुं प्रतिमा स्तूप पादुका, जयपुर आदि शहेर ।। ५ ।।
( ढाल ८)
(तर्ज-सरोदा कहां भूल पाये ) आवो भाई आवो, गुरु के गुण गारो ॥ टेर ।। देवी कहे देवेन्द्र सूरि के, चरण कमल में जाओ। बढ़ती उनके गच्छ की होगी, कुपथ में मत जाओ । गु० १ ॥ पद्मावती कहे तिलक सूरि के, शिष्य को स्तोत्र पढाओ। प्रतिदिन तपगछ बढ़ता रहेगा, प्रभसूरि ! मत घबराओ ॥गु०२।। मणिभद्र कहे दान सूरि को, विजय दान वरसावो। कुशल करूंगा विजय तपा का, विजय ध्वज फरकावो ।। गु० ३ ॥ ऐसे गच्छ में जगद् गुरु, श्री हीर सूरि को गावो। वर्ष इक्कीस हजार चलेगा, वीर शासन मन लावो । गु० ४ ॥ देश प्रदेशों में क्यों छोडो, गुरु चरणों में जावो । संग्राम सोनी पेथड सम ही, लक्ष्मी इज्जत पावो ।। गु०५ ।। जगद् गुरु के चरण कमल में, फल पूजा फल पावो। चारित्र दर्शन ज्ञान न्याय से, जय जय नाद गजावो ।। गु०६॥
काव्यम्-हिंसादि० मंत्र-ॐ श्री० फलं समर्पयामि स्वाहा ।। ८ ।।
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