Book Title: Jagad Guru Hir Nibandh
Author(s): Bhavyanandvijay
Publisher: Hit Satka Gyan Mandir

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Page 124
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सप्तमी नैवेद्य पूजा .-: दोहा :-- जगद् गुरु ने जीवन में, कीना तप श्री कार । तेले बेले सैंकड़ों, व्रत भी चार हजार ॥१॥ आम्बिल नीवी एकासणा, और विविध तप जान । प्रतिदिन बारह द्रव्य का, करे गुरुजी परिमाण ।।२।। काउसग्ग ध्यान अभिग्रह करे, प्रतिमा बार मनाय । दशवैकालिक नित्य जपे, चार क्रोड़ सज्झाय ॥३।। पण्डित एकसौ साठ थे, साधु कई हजार। एक सूरि उत्रज्झाय आठ, यह गुरु का परिवार ॥४॥ ( ढाल ७) (तर्ज-केशरिया ने कैसे जहाज तिराया ?) जगद्गुरु आज अमोलख पाया, नर भव सकल मनाया। जगद् गुरुने जगत के हित में, जीवन सारा बिताया। आपके शिष्य प्रशिष्यों ने भी, कीना काम सवाया ||ज०१॥ वाचक शान्तिचन्द्र गणि ने, कृपाग्रन्थ बनाया। सुनकर शाहने अपने जीवन में, मुरदा नहीं दफनाया ज०२॥ कल्याणमल के कष्ट पिंजर से, खंभात संघ को छुड़ाया। हमाय का इल्म बताया, जम्बूवृत्ति बनाया ।।ज० ३|| भानुचन्द्र ने शाही द्वारा, वाचक का पद पाया । शाही के पुत्र को ज्ञान बढ़ाया, तीरथ पट्टा पाया |ज० ४।। पटधर सेन सूरि आलम में, गौत्तम कल्प गवाया । पाटण राजनगर खंभात में, पर गच्छी को हराया ॥ज०५॥ सूरत में श्री भूषणदेव को बाद में दूर भगाया। शाही सभा में पांच से भट से, बाद में जय अपनाया ॥ज०६॥ For Private and Personal Use Only

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