Book Title: Jagad Guru Hir Nibandh
Author(s): Bhavyanandvijay
Publisher: Hit Satka Gyan Mandir

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Page 123
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०१ षष्ठी अक्षत पूजा -:दोहा :जगद् गुरु करे जगत में, भ्रातृ प्रेम प्रचार | अहिंसा के उपदेश से, अहिंसक बने नरनार ।।१।। (ढाल ६) अहिंसा का डंका आलम में, श्री जगद् गुरु ने बजवाया। महावीर का झंडा भारत में, श्री हीरसूरि ने फहराया ।टेर।। मयरानी रोह नगर स्वामी, शिकार को छोडे सुखकामी । सुल्तान सिरोही का नामी, उनका हिंसादि छुटवाया ॥१॥ अकबर सुबह में खाता था, सवा सेर कलेवा पाता था। चिड़ियों की जीभ मंगाता था, उस से उनका दिल हटवाया।।२।। कई पशु पक्षी को मारा था, और कई पर जुल्म गुजरा था । अकबर का यह नित्य चारा था, उसके लिये माफी मंगवाया ||३|| पिंजर से पक्षी छुड़वाये, कई कैदी को भी छुड़वाये । कई गैर इन्साफ का हटवाये, कइयों का जीवन सुलझाया ॥४॥ काला कानून था जजिया कर, जनता को सतावे दुःख देकर। अकबर को मजहब समझाकर जजियाकर पाप को धुलवाया ॥५॥ पर्यषण बारह दिन प्यारे, किसी जीव को कोई भी नहीं मारे । अकबर युअाज्ञा पुकारे, फरमान पत्र गुरु ने पाया ॥६॥ संक्रान्ति के रवि के दिन में, नवरोज मास ईदके दिन में । सुफियानमिहिर के सबदिन में, जीवघात शाहीने रुकवाया ॥७॥ फिर जन्म मास अपना सारा, जीवघात युं छै महिना टारा । चारित्र सुदर्शन भय हारा, गुरु चरण में अक्षत पद पाया | ___ काव्यम्-हिंसादि० मंत्र ॐ श्री अक्षतान समर्पयामि स्वाहा ।।६।। - For Private and Personal Use Only

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