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शाही सम्मान तो पाया, पुस्तक भंडार भी पाया । बड़ा श्रा में बुलवाया, अकबर नाम से सारा || इसी ||४|| तपगच्छ द्वेष दिलधारा, कल्याण खटचारा । उसी का गर्व उतारा, सभी के दुःख को टारा | इसी ||५|| फतेपुर, आगरा, मथुरा, शोरिपुर, लाभ, मालपुरा । भुवन प्रभु ब सनूरा, मोगल के राज्य में सारा || इसी || ६ || करे कोई गुरु पूजन, दीये हाथी हरे उलझन । करे वस्त्रादि से लुछन, यतिम याचक का दिल ठारा। इसी ॥७॥ तीरथ का टेक्स हटवाया, जजिया कर भी हटवाया । शत्रु जय तीर्थ फिर पाया, गुरु आधिन बने सारा || इसी ||८|| अकबर ने समझ लीना, बड़ा फरमान लिख हुक्म सालना छ महिना, यही उपकार तुम्हारा ॥ जगत पर कीना उपकारा, जगद् गुरु आप है प्यारा । अकबर ने यूं उच्चारा, दिया विरुद जयकारा || इसी ||१०|| गुरु उपदेश को पीकर, अकबर का हुक्म लेकर । जिता शाह जी बने मुनिवर, बना शाही यति प्यारा || इसी ॥ ११ ॥ नमे सुल्तान आजमखान, सिरोही देवड़ा सुल्तान | नमे प्रताप टेक प्रधान, गुणों का है नहीं पारा || इसी ॥१२॥
दीना ।
इसी ||६||
मुगल सम्राट दरबारा, खुला शुरु में गुरु द्वारा । पीछे जिनचन्द्रसिंह प्यारा, गये सेनादि गुरु सारा || इसी || १३||
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गुरु चारित्र सीतारा, विमल दर्शन का आधारा । गुरु कोई नहीं चारा, गुरु दीपक से उजियारा ॥ इसी ॥१४॥ काव्यम्-हिंसादि
बिना
मंत्र - ॐ श्री० दिपकं समर्पयामि स्वाहा ॥ ५ ॥