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त्यागी वैरागी गुणे भर्या रे लाल,
शान्त सुधारस वेल अतिसारी रे। गुण सम्राटना गवातां रे लाल,
पावे ऋद्धि विशाल अतिभारी रे ॥ ८ ॥ सूरि "हिमाचल" "भव्य' ने रे लाल,
दरशन दो एक बार मनधारी रे । 'गुमानविजय" ध्यावे सदा रे लाल,
आनंद मंगल माल बलिहारी रे ॥६॥
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