Book Title: Jagad Guru Hir Nibandh
Author(s): Bhavyanandvijay
Publisher: Hit Satka Gyan Mandir

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Page 125
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर से षट् जल्प को पाया, मृत धन आदि हटाया। सवाई हीर का विरुद पाया, परतिख पुण्य गवाया ॥ज०७॥ अकबर के पण्डित सभ्यों में, जिनका नाम लिखाया। विजय सेन भाणचन्द्र अमर है, शासन राग सवाया ॥ज०८॥ अष्टावधानी नंदनविजयजी, सिद्धिचन्द्र गणिराया। विवेक हर्षगणी इन्होंने, शाही से धर्म कराया ज०६॥ पड पट्ट धर श्री देवसूरि ने, वादी से जय पाया। सूरदेव चन्द्र श्रादि देवों ने, गुरु का मान बढ़ाया ॥ज०१०।। विरुद जहांगीर महातपा यूसलीम शाह से पाया। राणा जगतसिंह ने भी दया का, चार हुक्म लिखवाया ।।ज०११।। वाचक विनय ने लोक प्रकाश से, सच्चा पंथ बताया। यशोविजयजी वाचक गुरु के, ज्ञान का पार न पाया ।ज०१२।। खरतर पति जिनचन्द्र सूरिने, जगगुरु का यश गाया। फरमान सप्ताह की अहिंसा का, अकवरशाह से पाया ।।ज०१३।। गुरु के नाम से पावे धन सुत, यश सौभाग्य सवाया। चारित्र दर्शन गुरु चरणों में, भाव नैवेद्य धराया |ज०१४।। काव्यम्-हिंसादि मंत्र-ॐ श्री० नैवेद्य समर्पयामि स्वाहा ।।७।। अष्टमी फल पूजा दोहा: सोलसो बावन भादों में, सुदी ग्यारस की रात । गुरुजी स्वर्ग में जा बसे, उना में प्रख्यात ॥१॥ अग्निदाह के स्थान में, फले बांझ भी आम । दिखावे गमी मुकुट छोड़, अकबर अपने धाम ।। २ ।। For Private and Personal Use Only

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