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काव्यम् (वसंत तिलका) हिंसादि दूषण विनाश युग प्रधान, श्रीमद् जगद् गुरु सुहीर मुनीश्वराणाम्, उत्पत्ति मृत्यु भव दु:ख निवारणाय, भक्त्या प्रणम्य विमलं चरणं यजेऽहं ।। १ ।।
मंत्र ॐ श्री सकल सूरि पूरंदर जगद् गुरु भट्टारक श्री हीर विजय रमूरि चरणेभ्यो जलं समर्पयामि स्वाहा ॥१॥
द्वितीय चंदन पूजा
दोहा विजयदान सूरि विचरते आये पाटणपूर । उपदेश से भवि जीव को, मार्ग बताते धूर ॥ १॥ गुरुवर की सेवा करे, माणिभद्र महावीर । करे समृद्धि गच्छ में, काटे संघ की पोर ।। २ ॥ इस समय गुरु देव को, हुआ शिष्य का लाभ । तपगच्छ में प्रतिदिन बढे, धर्मलाभ धनलाभ ॥ ३ ॥
( ढाल २) (तर्ज-धन धन वो जग में नरनार ) धन धन वो जग में नरनार, जो गुरुदेव के गुण को गावे । टेर!!
पालनपुर भूमिसार, ओसवाल वंश उदार । महाजन के घर श्रीकार, प्रल्हादन पास की पूजा रचावे ।। १ ।।
धन सेठजी कुंराशाह, नाथी देवी शुभ चाह। चले जैन धर्म की राह, धर्म के मर्म को दिल में ठावे ॥२॥
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