SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०३ काव्यम् (वसंत तिलका) हिंसादि दूषण विनाश युग प्रधान, श्रीमद् जगद् गुरु सुहीर मुनीश्वराणाम्, उत्पत्ति मृत्यु भव दु:ख निवारणाय, भक्त्या प्रणम्य विमलं चरणं यजेऽहं ।। १ ।। मंत्र ॐ श्री सकल सूरि पूरंदर जगद् गुरु भट्टारक श्री हीर विजय रमूरि चरणेभ्यो जलं समर्पयामि स्वाहा ॥१॥ द्वितीय चंदन पूजा दोहा विजयदान सूरि विचरते आये पाटणपूर । उपदेश से भवि जीव को, मार्ग बताते धूर ॥ १॥ गुरुवर की सेवा करे, माणिभद्र महावीर । करे समृद्धि गच्छ में, काटे संघ की पोर ।। २ ॥ इस समय गुरु देव को, हुआ शिष्य का लाभ । तपगच्छ में प्रतिदिन बढे, धर्मलाभ धनलाभ ॥ ३ ॥ ( ढाल २) (तर्ज-धन धन वो जग में नरनार ) धन धन वो जग में नरनार, जो गुरुदेव के गुण को गावे । टेर!! पालनपुर भूमिसार, ओसवाल वंश उदार । महाजन के घर श्रीकार, प्रल्हादन पास की पूजा रचावे ।। १ ।। धन सेठजी कुंराशाह, नाथी देवी शुभ चाह। चले जैन धर्म की राह, धर्म के मर्म को दिल में ठावे ॥२॥ For Private and Personal Use Only
SR No.034238
Book TitleJagad Guru Hir Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyanandvijay
PublisherHit Satka Gyan Mandir
Publication Year1963
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy