Book Title: Jagad Guru Hir Nibandh
Author(s): Bhavyanandvijay
Publisher: Hit Satka Gyan Mandir

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Page 119
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०५ तप से ही सुख पाईए ।। हीर ॥२॥ सती शिरोमणि सद्गुणि रमणी । श्राविका चम्पा रे छै मासी तप ठाइये । हीर ॥ ३॥ देव कृपा से गुरु कृपा से । तप गुण बढ़ते रे __ कृपा को वारी जाइए। हीर ॥४॥ हुई तपस्या मोक्ष समस्या । आनंद हेतु रे उच्छव रंग चाहिये । हीर ॥ ५॥ तप की सवारी जूलूस भारी। बाजिंत्र बाजे रे जय नारे भी मिलाइए । हीर ।। ६ ।। अकबर बोले लोक है भोले। झूठी तपस्या रे चम्पा को कहे आइए । हीर ।। ७ ।। पूछे चम्पा से किन की कृपा से। रौजा मनाये रे सच्चा ही बतलाइये । हीर ।।८।। पार्श्व प्रभु की हीर गुरु की। चम्पा सुनावे रे कृपा का फल पाइये । हीर ॥ ॥ कृपालु नामी हीरजी स्वामी । ठाना शाहीने रे इनसे ही मिलना चाहिये । हीर ।। १० ।। गुरु चरन में भक्ति सुमन है। चारित्र दर्शन रे कर्मों का गढ ढाइये । हीर ।। ११ ।। काव्यम्-हिंसादि मंत्र ॐ श्री० पुष्पाणि समर्पयामि स्वाहा ॥ ३ ॥ चतुर्थ धूप पूजा : दोहा: अकबर दिल में चिंतवे, भारत का सुलतान । बुलाऊं गुरु हीरजी, जैनों का सुलतान ।। १॥ For Private and Personal Use Only

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