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से छिप कर ही रहना चाहते हैं, जहां जहां मनुष्य की आबादी होती है वहां वहां से वे दूर ही चले जाते हैं। और जब तक वे किसी दबाव में, भय में, आफत में नहीं आते अथवा वे घबराते नहीं, तब तक मनुष्य पर कभी हमला नहीं करते। उन बेचारे निर्दोश जीवों को अपराधी समझ कर उनकी जान लेना, मनुष्य का भयंकर अत्याचार है । गुन्हा है। इस गुन्हा की सजा, मनुष्य लोग अनेक प्रकार की बीमारियां, भूकम्प, जल प्रलय, आग आदि के द्वारा पाते हैं। जो मनुष्य शुद्ध अहिंसा का, शुद्ध मन से दया का पालन करते हैं, जिनको कोई जीव तकलीफ नहीं देता। इसलिये निरपराधी विशेषण का दुरुपयोग नहीं करना चाहिये।
निरपराधी विशेषण देने का तात्पर्य यह है कि मानो कोई मजिस्ट्रेट है और एक खून का गुनहगार उसके सामने आया । कानून की दृष्टि से उसको फांसी की सजा करनी है। उस समय उस अपराधी को दंड करना, सजा करना, उस मजिस्ट्रेट के लिये वाजिब है। इसी प्रकार कोई दुष्ट आदमी किसी बहन बेटी के ऊपर अत्याचार करता है । चोरी करता है । तो उस समय वह अपराधी समझा जायगा । और उसके अपराध की सजा करना गृहस्थ के लिये अनुचित नहीं समझा जायगा । इसलिये हर एक प्राणी पर दया रखना परम कर्तव्य है चूकि अहिंसा पालन करने वाला बड़ा भाग्यवान होता है और अहिंसावादी की आज्ञा जनता सहर्ष स्वीकार करती है, सौम्याकृति से सम्पन्न एवं परम त्यागी बनता है यश चारों दिशाओं में व्याप्त हो जाता है । चिरंजीवी तथा आरोग्यशाली बनता है। जो सब जीवों के ऊपर दया करता है वही सच्चा धर्मी कहा जाता है।
और धर्मी मनुष्य अवश्य सद्गति का पात्र बन जाता है। और उनको हमेशा सुख और सम्पदा अनायास ही मिल जाती है। इस लिये हे राजन् ! सर्व प्रकार से दया का पालन करना अपना परम पवित्र कर्त्तव्य समझे। इसी में तुम्हारा कल्याण है।
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