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में लूण अधिक पड़ गया। इसलिये जगद् गुरुदेव को नहीं वपराना। परंतु जगद् गुरुदेव तो पहले वापर बैठ गये थे । इतनी खारी खीचड़ी होने पर भी गुरुदेव ने एक भी शब्द शिष्य को नहीं कहा। जिव्हा पर कितना गुरुदेव ने काबू कर रखा ? कहने का तात्पर्य यह है कि रस नीरस जैसा तैसा मिलता, उससे ही अपना निर्वाह कर लेते थे। परंतु किसी को कहते नहीं ! इस पर शिष्य वर्ग बहुत घबराये कि गुरुदेव की तबियत अधिक बिगड़ जायगी। चिन्ता करने लगे। तब जगद् गुरुदेव ने आश्वासन भरे शब्दों में कहा कि चिन्ता न करो। मेरा स्वास्थ्य इस से नहीं बिगड़ेगा और सुधरेगा।
उत्तरोत्तर गुरुदेव का शरीर जीर्ण शीर्ण होता हुआ देख कर श्री संघ ने श्री विजयसेन सूरिजी को सूचना भेज दी कि आप जल्दी पधारिये। क्योंकि जगद् गुरुदेव का स्वास्थ्य दिनानुदिन अधिक बिगड़ता जा रहा है।
उस समय विजयसेन सूरिजी लाहोर से विहार कर महिम नगर में चौमासा के उद्देश से आ रहे थे इतने में उन्ना का पत्र मिला पत्र द्वारा समाचार जानकर महिमनगर में चातुर्मास न कर अतिशीघ्र चलते हुए पाटण आ पहुँचे कि चातुर्मास लागू हो गया जिससे आप विवश होकर वहीं बैठ गये, किन्तु आपका मन गुरुभक्ति में चला गया था केवल यहां पर शरीर मात्र ही था, अतएव आपके लिये चार मास निकालना चार युग सा हो गया। ___अब क्रमशः पर्युषण पर्व आ गया सूरिजी कल्पसूत्र सुनाने लगे गुरुदेव की कृपा से पर्व निर्विघ्नपूर्वक निकल गया, संवत्सरी को परस्पर खमत खामणा करके विजयसेन सूरिजी अपने प्रिय भक्तों को पत्र देने लगे, जिसमें एक पत्र अकबर के नाम से लिख कर श्रावक द्वारा भेजा। अपने गुरुदेव को सुख साता एवं वन्दना के लिये एक श्रावक मन्डली भेज दी।
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