Book Title: Jagad Guru Hir Nibandh
Author(s): Bhavyanandvijay
Publisher: Hit Satka Gyan Mandir

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Page 111
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६७ सूरिजी के पास पाटण नगर में दुःखप्रद समाचार पहुंचा, वे पत्र पढ़ने लगे तो उनका एवं अनुयायियों का हृदय कम्पायमान होकर शोक सागर में डूब गया, शोकातुर पट्टधर सेनसूरिजी सखेद गद्गद् वाणी से बोलने लगे हे गुरुदेव ! मुझे बिना दर्शन दिये ही आप कहां पधार गये ? श्राप मेरे मुकुटालंकार थे, दया सागर की सेवा निमित्त ही लाहौर से चला था किन्तु अभाग्यवश दर्शन न पा सका, आपने मेरे लिये थोड़ा सा भी विलम्ब नहीं किया मेरे मन की बात मन में ही रह गई, हे मेरे भगवान! आप जैसे सूत्रधार के बिना हम लोग किस आधार पर खड़े रहेंगे ? अपनी आत्म कथा किसे सुनाऊंगा ? किसको गुरुदेव शब्द से पुकारूंगा ? किसकी आज्ञा माला पहनूंगा, हे प्रभो ! अब आप जैसे दिवाकर के बिना मेरे हृदय गगन में कौन चमकेगा ? और अकबर जैसे कठोर हृदय को कौन पिघलावेगा ? गुरुदेव के बिना कौन उपदेशामृत की वर्षा करेगा ? इस भारत के प्राणियों को दुराचार से कौन बचावेगा । अहिंसा देवी की पूजा कौन करेगा। हे गुरो ! आज आपके परलोक सिधार जाने से धीरता का कौन आधार होगा ? विनय का कौन शरण होगा ? सत्य आज सचमुच मारा गया, करुणा बेचारी अब किसकी शरण में जायगी ? शान्ति को कौन धारण कर सकेगा ? क्षमा बेचारी फूट फूट कर रो रही है, संयम का साथी कौन बनेगा ? हे शासन शिरोमणे! आप अमर अजर हो गये, क्यों कि असंख्य जीवों की रक्षा के साथ पुण्य तीर्थ और जजिया आदि के कर मोचन करवाया है आपकी अमर कीर्तिलता जब तक सूर्य चन्द्र है तब तक बनी रहेगी। अतएव सविनय प्रार्थना है कि जो भव्य जीव आपको सच्चे हृदय से पुकारे उनके लिये मनोवांछित फल की पूर्ति करते रहें। इधर अकबर के पास में भी जगद्गुरु के देहावसान का पत्र श्रा पहुँचा, पत्र पढ़ते ही अत्यन्त दुःखमय होकर सारे राज्य में हड़ For Private and Personal Use Only

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