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के पास भी आम भेजे । बिना ऋतु के आम फल पाकर बादशाह असीम हर्ष में डूब गया और उस आम की केरिये अकबर के अलावा भी उन उन देशों में भेजी गई जहां कि गुरुदेव ने पवित्र चरण कमल रखे थे । गुरुदेव तो स्वर्ग में जा बैठे परन्तु कीर्तिलता पृथ्वीतल पर विशेष रूप से फैल गई।
अग्नि संस्कार की जमीन पर मेघ नाम पारिख ने लाडकी नामक अपनी भार्या के नाम से "लाडकी स्तूप" सुन्दर मनोहर एवं विशाल बनाकर गुरुदेव की चरण पादुकाएं स्थापित की । उन पादुका की पूजा भक्ति एवं दर्शन वंदन करने के लिये हजारों नरनारी आने लगे। उस दिन से लगा कर आज दिन पर्यन्त दर्शनार्थ आते जाते हैं। यह सब गुरुदेव के निर्मल चारित्र का प्रभाव है। अगर आज भी परिणाम शुद्धि से निरतिचार पूर्वक चारित्र पालन किया जाय तो देवलोक सुनिश्चित ही है।
विशेष बाबु पाटण स्तम्भनतीर्थ राजनगर अहमदाबाद सूरत हैदराबाद आगरा 'महुआ मालपुर पतन सांगानेर जयपुर आदि शहरों में हीर विहार (हीर मन्दिर) देखा जाता है। इस मन्दिर में प्रतिष्ठित शासन सम्राट की चमत्कारिक प्रतिमा की श्रद्धा पूर्वक पूजा भक्ति करने वालों का दुःख दारिद्र दूर हो जाता है और वह पुरुष लक्ष्मीपात्र एवं विजयी बन जाता है।
विजयसेन सूरिजी साधु मन्डल और श्रावक समुदाय की उदासीनता को देखकर अमिट शोक को अगत्या मिटाते हुए भव्य जीवों को आश्वासन देने लगे, चातुर्मास पूर्ण होते ही शासन का सारा भार अपने स्कंधों पर वहन करते हुए भाग्यशालियों को धर्मोपदेश देते हुए भूमन्डल को पावन करने लगे प्रिय पाठक !
विश्वोपकारी शासन चूड़ामणि सूरि पूङ गव जगद् गुरु देव जैसे महापुरुष आज दिन तक संसार में होते तो न
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