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ताल की उद्घोषणा करवा दी और अपने दरबार में नाच गान आदि सब बन्द करवा दिया, और अग्नि संस्कार के लिये चौरासी बीघा जमीन भेंट कर सच्ची श्रद्धान्जलि अकबर ने दी ।
जिस रात्रि में हीरसूरिजी स्वर्गवासी हुए उसी रात्रि की चौथी पहर में अकबर को स्वप्न में साधु वेष में ही दर्शन देते हैं, क्योंकि पहले अकबर से मुलाकात के समय वचन दिया था कि मैं देवलोक में जाऊंगा तो अवश्य तुम से मिलूंगा । स्वप्न में अकबर को कहते हैं कि मैं सुधर्मा नामक देवलोक में पार्श्वनामक विमान में गया हूँ । अकबर इस स्वप्न की सूचना राजसभा में करता है और खुशीयाली मनाता है ।
हीरसूरिजी का अन्तिम अग्नि संस्कार जहां किया वहां पर उसी रात्रि में देवता अपूर्व देव सम्बन्धी नाटक करते हैं उन की ध्वनि नगर में पहुँचती है । नगर के हजारों लोग ध्वनि के अनुसार कौतुक देखने जाते हैं तो वास्तविक रूप में नाटक देख अपने घर लौटते हैं इस नाटक की बात चारों दिशाओं में पवनवेगवत् फैल गई और उस दिन से उस स्थान की महत्ता और अधिक बढ़ गई ।
जिस रात्रि में नाटक हुआ उसी रात्रि के प्रथम प्रहर में ४ ब्राह्मण नगर के बाहर तलाब की तट पर जाप कर रहे थे, उस समय आकाश में देवताओं को परस्पर बातचीत करते हुए, जाते देख कान लगा कर सुनने लगे | जल्दी चलो जल्दी चलो श्री होरसूरि का मुख देखने के लिये जल्दी चलो। इस तरह की बातें करते हुए जा रहे थे 1 ब्राह्मणों ने इस घटना को सारे गांव में कह सुनाई और इधर से भी लोग नाटक देख आये थे। लोगों में हर्ष का पारावार न रहा ।
न संस्कार की जगह पर रहा हुआ बांझ आम भी उस रात्रि में फलीभूत हो गया, सब लोगों ने श्रम का फल खाया, और अकबर
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