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गांव में पधारने के लिये एवं चौमासा के लिए जोरदार विनती की। परंतु उना संघ की विनती को स्वीकार की गई। ___ कुछ दिन के बाद विहार करते हुए जगद् गुरुदेव श्री संघ के साथ उन्नतपुरी (उना) में पधारकर श्री श्रीमाल ज्ञातीय शाहबकोर को दीक्षा देकर के चातुर्मास का समय धर्मोपदेश द्वारा यापन करने लगे जनता का पवित्र अंतःकरण तप जप ध्यान गुरु सेवा आदि धर्म कार्यों में दिनानुदिन अधिकतर बढ़ने लगा, जगद् गुरुदेव के प्रताप से जैन जगत् में ही नहीं इस पूत भारत में अहिंसा देवी की निरंतर पूजा होने लगी।
प्रिय पाठक ! पूज्य गुरुदेव का अमूल्य समय अहर्निश तपोमय ही व्यतीत हुअा। क्योंकि आप से की हुई तपस्या का उल्लेख निम्न प्रकार पाया जाता है। तेले २२५ । बेले १८० उपपास ३६०० । पाम्बिल २०००। नीवी २००० । वीश स्थानक की तपस्या बीस वार। ग्यारह महीने का प्रतिमा तप । सूरिमंत्र श्राराधन तप। तथा विजय दान सूरिजी के देव लोक हो जाने पर भक्ति के निमित्त उपवास, आम्बिल, एकासणा, १३ मास तक कमसर, तथा चार करोड़ सज्जाय, एवं दशवकालिक नित्य जपना, और इनके अलावा ध्यान में कितना समय जाता था वह ज्ञानी गम्य है।
जगद्गुरुदेव ने अपने जीवन में अपने हाथ से ५० से ऊपर प्रतिष्ठा करवाई । ५०० जिन मन्दिर नूतन बनवाये, और १५०० सौ छोटे बड़े संघ निकलवाये।
आपके आज्ञाकारी साधु २५० थे। जिस में एक प्राचार्य । ८ उपाध्याय । १६० पन्डित (पन्यास) शेष मुनि (बिना पदवी के) थे। साध्वी लगभग पांच हजार सुनी जाती है। इतना साम्राज्य होने पर भी गर्व का नाम मात्र भी नहीं था और प्राणियों के हित के लिये कितना कठोर-उग्र विहार किया है वह सब आप के सामने ही है।
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