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भापका लड़का प्राज्ञा न माने तो क्या उसके लिये श्राप उपाय न सोचें ? काशिमखान ने सामलसागरजी को संकेत द्वारा बुला करके सूरिजी के चरणों में सुपुर्द करते हुए कहा कि गुरुदेव की आज्ञा पूरी तरह पालन करना, यह तुम्हारे लिये कल्याणकारी मार्ग है। मेरे अनुरोध से वापिस गच्छ में ले रहे हैं फिर भी ऐसा करोगे तो आपका कोई सहायक नहीं होगा। इस प्रकार बातचीत करके गुरुदेव को धामधूम पूर्वक पुनः धर्मशाला में पहुँचा दिये। पाठक ! आपने समझ लिया होगा कि उस समय समुदाय की कैसी मर्यादा थी ? अगर वैसी वर्तमान में हो जाय तो क्या साधु समाज उन्नति पथ पर नहीं पहुंच सकता । शासनदेव सबको सद्बुद्धि दे।
सूरिश्वर ने अहमदाबाद का सुवेदार आजमखान, पाटण का सूबेदार कासिमखान आदि बड़े बड़े राजा महाराजाओं को अपनी प्रोजस्वी भाषा में उपदेश देकर सच्चे अहिंसा के पुजारी बनाये । एवं मांस मदिरा, परस्त्री का जीवन पर्यन्त परित्याग करवाया। अपूर्व प्रभावशाली सूरिजी के सामने जब भारतवर्ष का सर्वेसर्वा अकबर बादशाह झुक चुका था। तो छोटे बड़े राजाओं का तो कहना ही क्या था ? इस प्रकार उपदेश द्वारा संसार में अहिंसा की भागीरथी बहाने वाले यही सूरिजी हुए हैं।
खंभात में कुछ दिन ठहर करके विहार कर अनेक गांवों में घूमते हुए सं० १६४६ में फाल्गुन मास में तीर्थ स्थान पर पहुँच गये। आपके पहुँचने के पूर्व ही समाचार पाकर मारवाड़, मेवाड़, मालवा, गुजरात, दक्षिण, बंगाल, कच्छ आदि प्रदेशों के करीब तीन लाख मनुष्य इकट्ठे हो गये । पहले इतने मनुष्यों का जत्था एक साथ होना असम्भव था क्योंकि यात्रियों से कर लिया जाता था। अब शासन सम्राट जगद् गुरुदेव की देशना से मुगल सम्राट अकबर ने यात्रियों का कर माफ कर दिया। जिससे यात्री अधिक संख्या में उपस्थित हुए।
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