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बहुत ही बुरा किया। मेरे अपराध को क्षमा कर आप हाथी घोड़ा चतुरंगी सेना आदि चीजों को स्वीकार कर मुझे कृतार्थ करें। क्योंकि श्राप परोपकारी एवं दयालु हैं। सब जीवों के त्राता हैं अतः मेरे एक अपराध को क्षमा कर अकबर के हुक्म को लौटा देना आपके ही ऊपर
आधार है। मैं आज से खुदा की शपथ पूर्वक कहता हूँ कि आयंदा कोई भी महात्मा का कभी अपमान नहीं करूंगा और आप नगर में पधारें।
सूरिजी ने कहा कि सुल्तानजी ! देखिये यह नगर आपका है और मेरा आपने अपमान किया। फिर भी आप मुझे आमन्त्रण दे रहे हैं इसलिये मैं चलने के लिये तैयार हूँ। क्यों कि मेरे हृदय में आपके प्रति बुरे विचार नहीं हैं अगर हो तो मैं आपके नगर में आऊंगा क्यों ? यह तो आप खुद ही विचार कर सकते हैं। अकबर का हुक्म तो प्राणान्त आगया। परन्तु मैं आपको कहता हूँ कि आप निश्चित अपना राज्य पालन करें। किन्तु किसी भी साधु का तिरस्कार कभी मत करना और अपनी प्रजा को शान्ति से पालन करना । हबीबुला को ऐसा कहकर सूरिजी शिष्य सहित उपाश्रय में पधार गये। हबीबुला भी अपनी राजधानी में चला गया ।। ___एक समय सूरिजी मुहपत्ति मुंह के ऊपर बांध कर व्याख्यान पढ़ रहे थे जिसमें हबीबुला भी शामिल था। प्रवचन के अंत में हबीबुला ने पूछा कि जगद् गुरो! आप मुख पर कपड़ा क्यों बांधते हैं ? सूरिजी ने कहा कि व्याख्यान पढ़ते समय मेरे मुख से थूक पुस्तक पर कदाचित् पड़ जाय तो ज्ञान की अशातना होती है। इस लिये कपड़ा रखने से दोष नहीं लगता है। पुनः हबीबुला ने पूछा कि महाराज ! क्या थूक नापाक है ? सूरिजी ने कहा कि जब तक मुंह में है तब तक पाक है और बाहर निकलने के बाद नापाक है।
जगद् गुरुदेव के माधुर्य वचन सुनकर मुग्ध भाव से प्रार्थना करने लगा कि महाराज ! मेरे योग्य सेवा कार्य फरमाईये। इस पर
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