Book Title: Jagad Guru Hir Nibandh
Author(s): Bhavyanandvijay
Publisher: Hit Satka Gyan Mandir

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Page 100
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यात्रा करने के लिये विहार किया, किन्तु बीच में राधनपुर, पालनपुर, अहमदाबाद होकर के खंभात पधारे । मेघजी पारेण के आग्रह से नव निर्मित मन्दिर की प्रतिष्ठा शानदार उत्सव के साथ जगद्गुरु के करकमलों द्वारा की गई। यहां पर एक मण अन्न एक ही टाईम में खाने वाला बड़ा पुष्ट शरीरवाला सुलतान हबीबुला नामक एक खोजी रहता था। वह बड़ा कामी एवं पूरा लोभी था। किसी कारण से सूरिजी का अपमान करके नगर बाहर निकाल दिया। सारी जैनी समाज में हाहाकार मच गया। सूरिजी के मन में तो कुछ भी विचार पादुर्भाव नहीं हुए। परन्तु भावी में साधुओं को तकलीफ न हो इनके लिये प्रतीकार करना जरूरी समझ कर धनविजय नामक शिष्य को अकबर के पास भेजा। वहां जाकर के उपाध्याय शान्तिचन्द्रजी द्वारा अकबर को सब कुछ घटना कह सुनाई । सुनते ही अकबर की भृकुटी चढ़ गई और क्रोधावेश में आते ही हुक्म लिख दिया कि हीरविजय सूरिजी की बुराई (अपमान) करने वालों को मार दिया जाय । इस प्रकार का फरमान लिख कर धनविजय के साथ अपने कर्मचारियों को भेज दिये । धनविजय ने गुरु सेवा में पहुँचते ही सब बातें निवेदन करते हुए कर्मचारियों के सामने फरमान उपस्थित कर दिये । इस प्रकार का फरमान लेकर कर्मचारी अकबर की आज्ञा से सूरिजी के पास पहुँच गये हैं। यह बात हबीबुला को मालूम हुई। अनर्थ हुआ कि मेरे लिये अकबर ने प्राणान्त आज्ञा दे दी है अब क्या करू ? किधर जाऊ! किंकर्तव्यमूढ होकर सूरिजी के चरणों में ही जाना उचित समझा। चूकि अकबर के प्राणान्त हुक्म को वापिस लौटा देने की शक्ति सूरिजी में है। ये चाहेंगे तो मुझे बचा देंगे। ऐसा अंतःकरण में खूब सोच कर मिलने के हेतु सूरिजी के चरणों में पा पड़ा और कहने लगा कि महाराज ! मैंने आपका अपमान कर For Private and Personal Use Only

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