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कि अकबर जैनी होगया। अकबर से सम्मानित सूरिजी को निरीक्षण कर ब्राह्मणों के हृदय में बहुत क्रोध उपजा, फिर सूरिजी के प्रति अश्रद्धा पैदा कराने के लिये अकबर को ब्राह्मणों ने कहा हे राजराजेश्वर ! जैनी लोग जगन्नियन्ता निर्विकार ब्रह्मा, विष्णु, महेश को नहीं मानते हैं और सृष्टि के कर्ता ईश्वर को नहीं मानते हैं ऐसे अनीश्वरवादी के मतानुसार चलना आप जैसे सम्राटों को श्रेयस्कार नहीं है अतएव हम लोगों की अर्ज है कि आप उनके पंजे में न पड़ कर पहले के जैसा ही वर्ताव करते रहें।
ब्राह्मणों के वचन सुनते ही कोपाग्नि से जलते हुए बादशाह ने राजसभा में क्रोधावेश को छिपा कर सूरिजी से कहा कि लोग कहते हैं कि जैनी लोग ईश्वर को नहीं मानते हैं तो उनके क्रिया कान्ड
आदि सब व्यर्थ ही हैं इसलिये आप तात्विक बातें बता कर हृदयस्थध्वान्त को दूर कर दीजिये, वरना अन्योन्याश्रय से मेरा कल्याण होना असम्भव है।
विजयसेन सूरिजी ब्राह्मण देवता की फैलाई हुई माया को मन ही मन समझ कर उत्तर देने लगे, हे शाहंशाह ! जो अठारह दूषणों से रहित है, जिस प्रकाशक के सामने सूर्य भी फीका पड़ जाता है और जन्म मरणादि से रहित है, जिसमें विषयों का सर्वथा अभाव है इस प्रकार के जो चिदात्मा अचिन्त्य स्वरूप परमात्मा (ईश्वर) है, ऐसे परमेश्वर को हम लोग मन वचन काया से सादर मानते हैं तो अनीश्वरवादी हम लोग कैसे हुए ? आप स्वयं सोच सकते हैं। क्या उसने हनुमन् नाटक का काव्य नहीं पढ़ा है ?
यं शैवाः समुपासते शिव इति ब्रह्मोति वेदान्तिनो बौद्धा बुद्ध इति प्रमाणः पटवः कर्मेति मीमांसका: अर्हन्नित्यथ जैनशासनताः कर्तेति नैयायिकाः सोयं वो विदधातु वांछित फलं त्रैलोक्य नाथः प्रभुः ॥११॥
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