Book Title: Jagad Guru Hir Nibandh
Author(s): Bhavyanandvijay
Publisher: Hit Satka Gyan Mandir

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Page 99
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमेश्वर को शैव लोग शिव शब्द से, वेदान्ती ब्रह्म शब्द से, बौद्ध बुद्ध शब्द से, मीमांसक कर्म शब्द से, जैनी अर्हन् शब्द से, नैयायिक कर्त्ता शब्द से ईश्वर को पुकारते हैं सचमुच कहा जाय तो ऊपर के श्लोक से स्पष्ट प्रतीत होता है कि जैन लोग ईश्वर को मानते ही हैं इस प्रकार सूरिजी के वचन पर दृढ़ विश्वस्त होकर अकबर ने भड़काने वाले ब्राह्मणों को फटकार दिया । एक दिन राजा को अपने महल में प्रसन्न चित्त से बैठा हुआ देख कर समयज्ञ विजयसेन सूरिजी ने कहा कि हे नरदेव ! आपने जैसे दाणी और जजिया कर छोड़ दिया है वैसे ही मृतमनुष्य के द्रव्य को भी छोड़ दीजिये जिससे आप अधिक प्रशंसा के पात्र बनेंगे, लक्ष्मी स्वाभाविक चंचल है फिर असन्मार्ग से आई हुई लक्ष्मी कितने दिन ठहर सकती है ? अतः अवश्य ही छोड़ दीजिये । शुभचिंतक विजयसेन सूरिजी के हित वचन सुन कर अकबर ने मृतमनुष्य के द्रव्य को सर्वदा के लिये तिलान्जली दे दी। बाद बादशाह के आग्रह से लाहोर चातुर्मास करते हुए ३६३ वादियों के साथ वाद-विवाद कर जयपताका को लहराने लगे। उस वक्त बादशाह ने खुश होकर के विजयरोन सूरि को "सवाई" पदवी प्रदान की । इस पदवी के समय अकबर की सभा में १४० विद्वान् थे । जब सवाई पदवी दी गई। तब अकबर ने ५ विद्वानों की मुख्य कमेटी बनाई। जिसमें प्रथम हीरविजय सूरिजी और पांचवें विजयसेन सूरिजी थे । जबकि सवाई विजयसेन सूरिजी लाहोर के भव्य प्राणियों को प्रतिबोध देते हुए सत्य और अहिंसा के पुजारी बनाते थे। तब जगद् गुरुदेव ने पाटण चौमासा के बाद सकल दुरित को ध्वंस करने वाली, मनवांछित फल को देने वाली, श्री सिद्धाचल (शत्रुंजय) तीर्थ की For Private and Personal Use Only

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