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संकल्प करते हुए उसी दूत को अपने आने का दिवस कह कर भागे भेज दिया।
फतहपुर में दूत के मुख से सूरि महाराज के आने की निश्चित खबर सुनकर अकबर, अबुलफजल, थानसिंह और कर्मचारी आदि सब कैदी अपने अपने मनोरथ रथ को बढ़ाते हुए गुरुदेव के आने के दिन की प्रतीक्षा करने लगे। ___ कुछ समय व्यतीत होने पर फतहपुर सीकरी के पास आए हुए सूरिजी की खबर पाते ही बड़े समारोह से उन्हें शाही महल में लाकर विश्राम के लिये योग्य स्थान पर बैठा करके अकबर अपने महल में चला गया, बाद में जनता भी तितर बितर हो गई।
अकबर को दूसरे दिन सूरिजी आम जनता के समक्ष धर्मोपदेश देने लगे, जिसमें कितने ही भव्य जीव परमात्मा के स्वरूप को समझ करके अपेय अभक्ष्य मदिरा मांस और कुव्यसनों को छोड़ करके सन्मार्गगामी होते हुए सूरिजी को गुरु तुल्य मानने लगे, अकबर के भी हृदय में इस उपदेश का गहरा असर पड़ा, जिसके फलस्वरूप अकबर का पाषाणवत् कठोर हृदय भी मोम की तरह कोमल बन गया।
एक समय बादशाह ने सूरिजी से कहा कि गुरुदेव ! आपने जो कष्ट किया है उसके लिये मेरे दिल में बड़ा दर्द है जिसकी निवृत्ति तभी हो सकती है जबकि आप हम से कुछ लेवें, उत्तर में सूरिजी ने कहा शाहंशाह ! यदि आपकी बीमारी मुझे देने से ही हट जाती है तो मेरे आत्म कल्याण में सहायक चीजें देकर आप कृत कृत्य हो जाइये, वे चीजें यह हैं कि
___ आपके जेलखाने में कितने ही वर्षों से जो कैदी पड़े हुए सड़ रहे हैं उन अभागों पर दया करके छोड़ दीजिये जो वेचारे निर्दोष पक्षी
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