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मा रहा है। लेकिन फिर कभी समय पाकर आप से बातचीत करके अपने को धन्य समझूगा । इतनी बातें कर सभा विसर्जन हो गई।
चातुर्मास का आसन्न समय देख कर सूरिजी ने बादशाह को संकेत करके आगरे की तरफ विहार कर दिया। आगरा बादशाह की मुख्य राजधानी थी, वहां की जनता की अनन्य भक्ति से विवश होकर सं. १६३६ का चातुर्मास आपने आगरा में ठालिया। वहां के नागरिक जीवों की भावना को अपने उपदेश प्रसाद द्वारा अक्षरशः परिवर्तन करते हुए आपने अहिंसा देवी की स्थापना करके चातुर्मास उठते ही कुशावर्त देशस्थ शोर्यपुर में श्री नेमीश्वर भगवान की यात्रा कर पिपासित चक्षुओं को तृप्त करते हुए वापिस आगरा पधारने पर चिन्तामणि पार्श्वनाथ प्रासाद की धामधूमपूर्वक प्रतिष्ठा की, इतने में अकबर बादशाह का राजदूत आपको बुलाने के लिये आकर प्रार्थना करने लगा, हे विश्वरक्षक । आपके लिये बादशाह बहुत लालायित हैं, आपकी दैनिक चर्चा किये बिना चैन नहीं पड़ता है, इतने दिन चातुर्मास की वजह से अगत्या समय बिताया है, अब प्रार्थना की है कि एक बार और कृपा करके पधार जावें, अतः हे भक्त प्रिय ! आप वहां पधारने के बाद अन्यत्र पधारे, भूपाल को सन्मार्ग में लाने से सारी प्रजा अपने आप सुधर जायगी, एक भूपाल को काबू में लाने से अन्य जनता स्वतः काबू में आ जाती है, दुराचारी एवं दुराग्रही जन भी शासक की साम दाम दंड और भेदरूपी नीति से वश में आ जाते हैं । आपकी दया सुनकर कैदी लोग पुकार रहे हैं कि एक बार वे महात्मा और आ जाते तो हम लोग भी कैदखाने से छुटकारा पा जाते अतएव हे परोपकारिन् ! आप अवश्य पधारें।
सर्वजीवोपकारी श्री हीरविजयसूरिजी महाराज ने सब बातें सुन कर प्रत्येक पशु पक्षी आदि जीवों को मुक्त करवाने के मन ही मन
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