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श्राप राजकीय सत्ता को लेकर विजयसेनसूरिजी के शिष्य के साथ शास्त्रार्थ कर पराजय करके अपना गौरव बढ़ाइये, इस पर कल्याणराज नामक साधु ने खानखाना नामक राजेन्द्र की सभा में सामंतादिक राजकर्मचारी और नगर के प्रतिष्ठित व्यक्तियों के सामने सूरि जी से विवाद उठाया, परिणाम में कल्याणराज को पराजय कर सूरि जी के शिष्य ने अपने गुरुजी की महत्ता को बढ़ाते हुए सकल जन को वश में कर लिया और औष्ट्रिक मत के अनुयायियों का भी संशय रूपी अंधकार को दूर कर दिया, आपकी जयध्वनि से नगर गूंज उठा।
यह विजयध्वनि विजयसेन सूरि के कर्ण गोचर होते ही प्रेरणा करने लगी कि आप अमदाबाद पधारें। तदनन्तर सूरिजी पतन नगर से विहारी होकर अल्पकाल में अमदाबाद पधार गये, आपके सामैया (स्वागत) में राजा की तरफ से हाथी घोड़ा नगारा निशान आदि सामग्री द्वारा शहर में अच्छी अच्छी सजावटें की गई नगर की नारियां ने स्वर्ण की चौकी पर हीरा माणिक मोतियों के साथिये (स्वस्तिक) और नन्दावर्त बना करके धवल मंगल गीत गाती हुई श्रद्धा पूर्वक सूरिजी की भक्ति की। श्रावक गरण ने ज्ञान पूजा प्रभावना स्वामी वात्सल्य आदि में भाग लिया।
जब सूरिजी ने धर्म देशना प्रारम्भ की तब कुतूहलता से खानखाना राजा राजकर्मचारी जैन और जैनेतर धर्मावलम्बी अनेक सज्जन उपस्थित हुए। सूरिजी का माधुर्य उपदेश सब को लोह चुम्बक की तरह अपनी ओर आकर्षित करने लगा।
चातुर्मास निकट आजाने पर राजा प्रजा के अत्याग्रहवश सूरिजी चौमासा आडम्बर पूर्वक अहमदाबाद में करके आसपास के शहरों में भव्य जीवों को प्रतिबोध देने लगे।
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