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हे
गुजरात से रवाना हो कर सीरोही आ पहुँचे, दोनों गुरु शिष्यों के मिलाप से जो आनन्द श्रोत बहा वह अवर्णनीय है। कुछ दिन के बाद विजयसेनसूरिजी गुरु आज्ञा पाकर स्तम्भन तीर्थ की यात्रा करने के लिये रवाना हो गये, जगद् गुरुदेव भी सिरोही से विहार करके मगसुदाबाद पहुँचे, यहां पर हिन्दू कुल सूर्य जगत विख्यात महाराणा प्रतापसिंहजी ने जगद् गुरुदेव श्री मद्विजय हीरसूरिजी को मेवाड़ प्रदेश में पधारने के लिए प्रार्थना पत्र भेजा, उसकी नकल इस प्रकार है।
पत्र मेवाड़ी भाषा मेंस्वस्ति श्री मगसुदानन महाशुभ स्थाने सरबओपमा लायक पूज्य भट्टाकरजी महाराज श्री हीरबजे सूरिजी चरण कुमला अये स्वस्थ श्री वजे कटक चांवडारा केरा सुथाने महाराजाधिराज श्री राणाप्रताप सिंहजी ली. पगे लागणो बांचसी अठार। समाचार भला है अपरा सदा भला छइजे । आप बड़ा है पूजनीक है सदा कृपा राखे वीसु ससह (श्रेष्ठ) रखावेगा । अपरंच आपरो पत्र अणा दना म्हे आयो नहिं, सो कृपा कर लखावेगा । श्री बड़ा हजूररी वगत पधारवो हुओ जिमे अठा सुपाछा पदारता पातसां अकब्रजी ने जेनाबाद म्हे ग्रांन रो प्रति बोध दीदो चमत्कार मोटो बतायो जीत्र हिंसा छरकली (चिडिया) तथा पंषेरु (पक्षी) वेती सो माफ कराई जीरो मोटो उपकार कीदो सो श्री जैन रा ध्रम में आप असाहीज अदोतकारी अबार कीसे देखता आप ज्युफेर वे नहीं भावी पुर बही दस स्थान अत्र वेद गुजरात सुदा चारु दसा म्हे धरमारो बड़ो अदोतकर देखाणो जठा पछे आपरो पदारणो हुओ नहीं सो कारण कही वेगा पधारसी आगे सु पट्टा प्रवाना कारण रा दस्तुर माफक आप्रे है जी माफक तोलमुरजाद सामो आवो साबत रेगा। श्री बड़ा हजुररी वखत आप्रा गुरुजी रे सामो आवारी कसर पड़ी सुणी सो काम कारण लेखे भुल वही वेगा । जीरो अदेसो
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