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था क्योंकि आप एक ही साथ एक सौ आठ अवधान करने से असाधारण प्रतिभा को पाकर दिगविजय के समान अद्वितीय विद्वान बन गये थे, और भूतपूर्व में बागड़ घटशिल नगराधीश तथा जोधपुरीय भूपति मल्लदेव के भतीजा राजा सहस्रमल्ल की अध्यक्षता में गुण चन्द्र नामक परगच्छाचार्य को, एवं अनेक दिग्गज विद्वानों को पराजय पूर्वक जय पताका फहराते हुए राजपूताना के अनेक राज्यों के मनोरंजक बन गये थे, फिर वह समय आने पर ईडरगढ़ के महाराजा श्री नारायण की सभा में वादी भूषण के साथ उपाध्याय शान्तिचन्द्र जी वादविवाद पूर्वक अन्त में उसे पराजय कर आपने विजय माला पहन ली, इस प्रकार उपाध्यायजी की अजेय विद्वता को देख कर अकबर का मुाया हुआ दिल हरा भरा हो गया, और सोहार्द और
औदार्य गुणों से प्रशंसात्मक उपाध्याय रचित कृपारस कोष को आपके मुखारबिन्द से १२८ पद्यों को सुनकर अकबर मुक्त कंठ से प्रशंसा करता हुआ विशेष दयामय जीवन बनाता हुआ आप में अनुरक्त हो गया, जिससे शान्तिचन्द्रजी के कथनानुसार जजिया कर, मृत द्रव्य ग्रहण करना कतई बन्द कर दिया और अकबर गाय, भैंस, बैल,बकरा आदि पशुओं को कसाई की छरी से बचाने के लिये साल भर में छः महीने तक सभी जीवों को अभय दान देकर अहिंसा का परम पुजारी बन गया, अकबर के भारत में छः मास अहिंसा पलाने का दिन निम्न प्रकार पाया जाता है।
पर्युषण के १२ दिन, सर्व रविवार के दिन, सोफियान एवं ईद के दिन, संक्रांति की सर्व तीथियें, अकबर के जन्म का पूरा मास, मिहिर और नवरोजा के दिन, सम्राट के तीनों पुत्रों का जन्म मास और रजब (मोहरम) के दिन । अंग्रेजी इतिहासकार केम्ब्रीज हिस्ट्री ऑफ इन्डिया कोल्फम ४ में लिखते हैं कि अकबर छः मील की जगह पर पशुओं को इकट्ठा करवा कर एक ही साथ चारों तरफ से घेरा डाल कर १५ हजार पशुओं को पांच दिन में कर रीति से मारता था।
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