Book Title: Jagad Guru Hir Nibandh
Author(s): Bhavyanandvijay
Publisher: Hit Satka Gyan Mandir

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Page 86
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir को निकाल देने पर आपकी विजय सुनिश्चित है, इस प्रकार अकबर को भड़काने पर भी उपाध्यायजी के प्रति श्रद्धा टूटी नहीं। और उपाध्यायजी को निवेदन किया कि ये लोग आपके प्रति इस तरह शंका कर रहे हैं, इसका कुछ प्रतिकार होना चाहिये । ___उत्तर देते हुए उपाध्यायजी ने कहा कि कल सुबह ही तुम्हारी विजय होगी परन्तु एक शर्त है, वह यह है कि कोई भी मानव यहां हिंसा न करे, तमाम सैनिकों से शस्त्र बंद करवा दिया जाय। और कल ही अपने दोनों नगर के अन्दर प्रवेश कर आपकी विजय पताका फहराकर वापिस आ जायेंगे। फिर क्या था ? अकबर बड़ा प्रसन्न हुआ सुबह हुआ। दोनों चल धरे। लोग शंका करने लगे कि अकबर को शत्र के हाथ सोंपने लेजा रहा है। फिर भी अकबर का मन बड़ा मजबूत था । दोनों नगर के समीप पहुँच गये। उपाध्यायजी ने एक फूक मारी सारा गढ़ (किला) गिर पड़ा। दूसरी फूक मारी द्वार खुल गये। और तीसरी फूक मारते ही वहां का राज्य अकबर के आधीन हो गया। उपाध्यायजी का यह चमत्कार देख लोग दांतों तले अंगुली दबाने लगे। और अपने मन में की गई शंका का पश्चाताप करने लगे। विजय के बाजे बजने लगे। जय जय ध्वनि से गगन मंडल गूंज उठा। अकबर अपनी विजय पताका फहरा कर उपाध्यायजी के साथ ही वापिस डेरे में आ गया। इस प्रकार उपाध्यायजी ने अकबर के हृदय में जैन धर्म की अमिट छाप जमादी। धन्य है उपाध्यायजी को कि तकलीफ को भी सहन कर गुरुदेव की आज्ञा पालने में बड़े सर्तक एवं पूरे सावधान रहे। धन्य है अकबर को भी जो इस प्रकार भड़काने पर भी उनके प्रति श्रद्धा अटूट रखी। कुछ दिन में आपकी धवल कीर्ति चारों ओर फैलती हुई देख कर स्पर्धालु परगच्छीय भट्टारक वादी भूषण ने शास्त्रार्थ करने की उद्घोषणा कर दी, उपाध्यायजी को शास्त्रार्थ करना बायें हाथ का खेल For Private and Personal Use Only

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