Book Title: Jagad Guru Hir Nibandh
Author(s): Bhavyanandvijay
Publisher: Hit Satka Gyan Mandir

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Page 75
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है इस कारण हमने उनकी प्रार्थना को मान ली और हुक्म दिया कि उन १२ दिनों में किसी जीव की हिंसा न की जायगी। यह नियम सदा के लिये कायम रहेगा और सबको इसकी आज्ञा पालन करने और इस बात का यत्न करने के लिये हुक्म दिया जाता है कि कोई मनुष्य अपने धर्म सम्बन्धी कार्यो के करने में दुःख न पावे, मिति ७ सन् १५६५ । अकबर ने फरमान देते हुए सूरिजी से यह भी कहा कि मद्य मांस के प्रिय मेरे अनुचरों को जीवहत्या बन्द करने की बात रुचिकारक नहीं होने के कारण धीरे धीरे बन्द कराने की कोशिश करूंगा, पहले की तरह मैं भी शिकार नहीं करूंगा और ऐसा प्रबन्ध कर दंगा कि प्राणिमात्र को किसी तरह की तकलीफ न हो। एक दिन सूरिजी के विवेक पर मुग्ध होते हुए अकबर ने आपको गुरु मानते हुए सारी प्रजा के समक्ष गुरुदेव को जगद् गुरु की पदवी दे दी, इस समय एक भाट ने गुरु स्तुति की, जिसमें अकबर ने उसको लाख रुपये दे दिये। और जगद् गुरु पदवी के समय अकबर ने महान उत्सव मनाया। जिसमें कुल एक करोड का. खर्च कर दिया। धन्य है अकबर की गुरुभक्ति को। उस उत्सव का आनन्द अनुपम रहा, इस खुशीयाली में मेड़तीय शाह सदारंग ने हजारों रुपये तथा हाथी घोड़े गरीब गुरबों एवं याचकों को दान देकर संतुष्ट कर दिये, कैदी सब लोग सूरिजी की जय जय बोलने लगे । पिंजडे से निकलते हुए पक्षीगण आपके गुणगान करते हुए अपने परिवारों से मिलने के लिये उत्सुक होकर यथेच्छ परिभ्रमण करने लगे, शहर में चारों और दुंदुभि नाद होने लगा, सेठ साहुकार लोग श्रीफल मिठाई कपड़े रुपये इत्यादि की प्रभावना देने लगे, उस समय अकबर बदशाह का माननीय प्रतिष्ठित जेताशाह For Private and Personal Use Only

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