Book Title: Jagad Guru Hir Nibandh
Author(s): Bhavyanandvijay
Publisher: Hit Satka Gyan Mandir

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Page 82
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जब तक यह शाश्वत फरमान जैन श्वेताम्बर धर्म वालों में प्रकाशित रहे, कोई भी मनुष्य इस फरमान में दखल न करे । इन पर्वतों की जगह, नीचे ऊपर आसपास सभी यात्रा के स्थानों में और पूजा भक्ति करने की जगहों में कोई भी किसी प्रकार की जीव हिंसा न करे । इस हुक्म पर गौर कर अमल करें, कोई भी इससे उल्टा बर्ताव न करे तथा दूसरी नई सनद न मांगे, लिखा ता० ७ मी, माहे उदी बेहेस्त मुताबिक राउल अवल सन ३७ जुलसी, (सन १८५३) ___ फरमान के साथ ही साथ अकबर ने प्रार्थना की कि हे गुरुदेव ! आप त्यागी पुरुष हैं तथा विश्व के हित चिंतक है अतः आपको यहां से जाने के लिये मैं कैसे कहूँ ? तथा ना भी कैसे कहूँ ! अंतिम में अर्ज यही है कि समय समय पर मेरे योग्य सेवा कार्य फरमाते रहें और आप जैसे गुरुदेव का भी फर्ज है कि मेरे जैसे अधम सेवक को न भूलें। विनीत बादशाह के प्रिय वचन सुनकर धर्माशीर्वाद प्रदान करते हुए नव पल्लवित पौधे की रक्षा निमित्त उपाध्याय शान्तिचन्द्र को रख कर प्रजा सहित मुगल सम्राट को आश्वासन देते हुए शेष शिष्य सहित सूरिजी गुजरात की तरफ रवाना हो गये। एक दिन एक ब्राह्मण अपनी उदर पूर्ति के लिये इधर उधर भटक रहा था, कर्म संयोग से सर्प ने काट खाया, विष शरीर में फैल चुका, मुर्दे की तरह जमीन पर पड़ा था, अचानक एक मनुष्य का इधर आना हुआ । विष व्याप्त उस मुरदे को देख कर गुरुदेव का स्मरण पूर्वक हाथ फैरने लगा, कुछ ही समय में निद्रामुक्त की तरह उठ बैठा हुआ, बोला भाई ! तुमने क्या जादू का प्रयोग किया है ? यह जादू मुझे भी सिखा दीजिये ताकि मैं भी आपकी तरह उपकार बुद्धि रखंगा ! उसने कहा कि मैं न तो मन्त्र जानता हूँ और न तंत्र ही। मैंने केवल मेरे गुरुदेव श्रीमद्विजय हीरसूरिजी का नाम पढा है। जो For Private and Personal Use Only

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