Book Title: Jagad Guru Hir Nibandh
Author(s): Bhavyanandvijay
Publisher: Hit Satka Gyan Mandir

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Page 62
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तक अंदर से कोई नहीं आ रहा है क्या कारण है ? शायद फक्कड बाबा बादशाह को अपनी फक्कड़ाई द्वारा कहीं ले तो नहीं गया, इतने में आगे सूरिजी महाराज और पीछे पीछे अकबर बादशाह को सभा मंडप में आते हुए देख कर अपनी अपनी शंका को हटाते हुए आनंद में मग्न हो गये। अकबर सभा में आकर यथोचित स्थान पर सूरिजी को बैठा कर स्वयं बैठते ही कहने लगा कि इन महात्माओं की कृपा से मेरी राजधानी पूर्ण पवित्र हो गई है। मैं कई एक दिनों से ऐसे फकीरों की खोज में था परंतु मुकदर (भाग्य) से आज आपके चरण रज से कृतार्थ हुआ हूँ, मुझे आशा है कि आप मेरे पर दया करके कुछ दिन ठहरकर सन्मार्गी बनाने का कष्ट करेंगे, अबुलफजल को उदेश करके अकबर ने कहा कि सूरिजी की विद्वता निस्पृहता और पवित्रता से अनुमान होता है कि आपके शिष्य वर्ग भी सकल कला से परिपूर्ण होंगे, इतने में अबुलफजल बोल उठा गरीबनवाज ! अापके शिष्य की वक्तृत्व कला से मालूम होता है कि आपके गुरुजी बृहस्पति के तुल्य ही होंगे, विशेष परिचय तो आपको हो ही गया होगा। तत्पश्चात् अकबर ने थानसिंह को पूछा कि सूरिजी के कितने शिष्य होंगे, उनमें से साथ कितने हैं, जवाब में थानसिंह ने निवेदन किया कि हजर आपके २५०० पच्चीस सौ शिष्य हैं, जिनमें एक शिष्य पट्टधर विजयसेन सूरिजी है और ८ उपाध्याय और १६० पंडित हैं, शेष विना पदवी के मुनी हैं इनमें से उपाध्याय श्री शान्ति चंद्र गणि आदि १३ तो सामने दीख रहे हैं किन्तु सुना है कि कुल ७८ साथ हैं, उपस्थित शिष्यों का नाम तो उपाध्यायजी बता सकते हैं इस बात को सुन कर उपाध्याय श्री शान्तिचंद्र गणि ने सभा में उपस्थित शिष्यों के नाम की आकांक्षा की पूर्ति करके अकबर की शंका को लंका भेज दी, इस प्रकार विनोद के बाद सूरिजी ने उठकर जाने For Private and Personal Use Only

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